वीर सावरकर | Veer - Savarkar

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Veer - Savarkar by प्रेमचन्द्र विद्याभास्कर - Premchandra Vidyabhaskar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जन्म ओर बाल्यकाल श्? सफलता सममने लगा था । कभी किसी मरिजिद पर हमला करता ओर दूसरी बिरोधी सेना को परास्त कर देता था । भालों की लड़ाई का भी सावरकर ने अभ्यास किया । कल्पित सेना के सब सैंनिकों के पास 'भाले कहां से आाघ ? लिखने के कलम उनके भाले बनते थे और उनसे वे परस्पर युद्ध किया करते थे । पिता जी से राणा प्रताप, शिवाजी आदि वीरों के चीरतापूण कार्यो की कथा सुनते रहने से सावरकर का हृदय सी इन भावनाओं से भर गया ओर बाल्यावस्था से ही उनका ध्यान देश तथा धर्म की श्मोर खिंच गया । प्रतिभाशाली तो इतना था कि १० चर्पे की यु में ही उसने मराठी मे कवितायें करनी आरम्भ कर दो ार पूना के प्रसिद्ध समाचारपत्र भी उन्हें प्रकाशित करने लगे । १, न १८६३-६५ में समस्त देश में हिन्दु-मुस्लिम दंगे होते रहे । महाराष्ट्र में थी इस अग्नि की ज्वालायें धधदीं । चम्वई और पूना आदि में भीपण दंगे और उत्पात होने लगे । समाचार-पत्रों में इन समाचारों को पढ़कर सावरकर के ह्रय में जातीय प्रेम गौर देश सेवा के भाव ओर भी अधिक भर गये । सन्‌ १८६९ में जब विनायक की 'झायु केवल ६ चपें की थी माता का महामारी से देदान्त दो गया । घर में और कोई दूसरी ारत न थी । सावरकर आदि ४ भाई श्रौर ९ चहिनें हुई थी । न भाई ओर १ चहिन बहुत छोटी आयु सें ही मर चुके थे । अब ३ भाई छोर १ चहिन थे । इन सबके पालन-पोपण का भार पिता यो वन्धों पर था पढ़ा । पिता जी ने यदद समस्त प्रवन्ध इस




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