श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 7 | Shri Bhagwat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 7
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खस्तु'पाते थे, 'झव माँगने, भी जाते हैं -तो' कागद । सो भी मूल्य
देकर, केवल स्वीकृति माँगने । वह भी मिलती नहीं । जान यूमः-
कर अधिकारी न देते हों सो भी वात नहीं । देश में शौर विशेष
कर युक्तप्रान्त में कागल की शस्यन्त कठिनाई है । सुना है कागद
की एक चड़ी मिल बन्द पड़ी है एक मिल में चिरकाल से हड़ताल
है। जितना कागज का कोटा इस प्रान्त के लिये स्वीकृत हैं, उनना
कांगद यातायात की 'अझब्यवस्था के कारण आ नहीं सकता । 'झतः
गत ४ महीनों से प्रान्त में कागद की त्राहि-वाहि मची हुई हैं । बड़े--
बड़े प्रकाशक बेकार बैठे हैं। समाचार पत्रों के कागद से प्रतिचन्ध'
('कन्ट्ोल ) उठ गया है। 'भागवती कथा” तो पुर्तकी कागद पर
छपती है. । सुना है अब उस पर से भी प्रतिघन्ध उठने वाला है! ।'
यदि प्रतिचन्ध उठ गया, तो सम्भव है कागद का भाव श्र भी
बधिक तेज हो और कुछ काल के लिये तो मिलना ही दुल॑भ हो
ज्ञाय । रत हमारी 'भागवती कथा' के. पाठकों से यही विनीत
प्रार्थना है कि झागे के खणडों-में परिस्थिति के कारण छुछ देर”
सबेर हो जाय तो बे बुरा न मानें प्रयत्न हमारा यही रहेगा कि
खण्ड समय पर प्रकाशित दो, किन्तु सवें साधन विद्दीन होंने से
यदि हम शीघ प्रबन्ध न कर सकें, तो पाठक घैर्य रखें । व्यब पहुँचने
में गड़बड़ी तो दो नहीं सकती, वयोंकि अब हमने सभी प्राहकों
को रजिप्ट्री से भेजने का निश्चय कर लिया हैं । पाँचवे छठे खण्ड
रजिप्ट्री से पहुँचने से ही हमारे पास सैकड़ों पत्न था रहे हैं
हमें तीसरा खण्ड नहीं मिला, हमें चौथा खण्ड नहीं मिला ।
चौथा खण्ड बहुत खोया है । 'अंव दुबारा खण्ड भेजने से हमारे
पास बचते ही नहीं । अब तक तो लिखते थे, उन्हें चिना मूल्य
फिर से भेज देते थे । इससे अनेक प्रकार की 'मौर भी गड़बडियाँ
हो गई । इसलिए अब जिन्हें लो खण्ड मैंगाने हों उसे दाम देकर
मेंगावें । कागद कितना भी मेंहगा हो, देशिया तो हम बढ़ा नहीं
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