जैन धर्म क महत्व भाग - 1 | Jain Dharm Ka Mahatv Bhag - 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
211
श्रेणी :
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No Information available about सूरजमलजी सहायक - Surajamal Ji Sahayak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रशशू )
बहुत दिनोंतक कुछ खाना नहीं खाया । नाकके आंगेके हिस्से-
यर निगाह जमाकर बेटे रहे । चुपचाप न किसीसे बोछना ने चाठना
न जिस्मका ख्याल न तनका ख्याल , बारिसका मूसलाधार पानी बरस
गया, सूरज उनपर अपनी कडी 'घूपका इम्तहान कर गया, ओस व
पालाकी सख्ती और मौसमोंकी सरद महरीने खूब अच्छी तरह
आजमा कर देख छिया, सूरज चाहें इधरसे उधर चला जाता,
हिमाउ्यंकी जगह चाहे समंदर लहरें मारता, मगर इनमें जुंबिश
नहीं था । जब॒ सब कुछ हो गया, ज्ञानकी प्राप्तिका वक्त आया
एक यक्षने आकर दरख्वास्त की, “ महाप्रभु ! तप पूरा हुआ, ”
अब देशको चिताइये और धर्मकी मयांदा कायम कीजिए )
ये उठे और कुछ दिनॉबाद राजग्ृहमें आये । एक गांवका
रहनेवाला पंडित जो स्वभावका चंचल था, मिला. इनको फकीर
समझकर बाचबीत करनेका शायकें हुआ । ये बोटे, “ तू धर्मकी
तलाशर्म चला दे या अपनी बुद्धि दिखाना चाहता है” इसने
ताम्सुंरके साथ कहा “' मैं धंमेका जिज्ञाखु हू” महावीर स्वामीनि
जबाब दिया, “धरम मुझमें है, मे धमका रूप हु) मेरी जिंदगी धमकी
जिंदगी है. मुझको देख तुझको धर्सका दर्शन मिठेगा[ ।” वह. हैरान
हुआ, मगर इन सीधी सीधी बातेंमें सच्चाइ थी, दिलमें असर
कर गई और वह उनका शागिर्द बन गया ।
जा खोजत ब्रह्मा थके; नर मुनिदेवा ।
करूँ कवीर छुन साधवा, कर सतगुरुू सेवा ॥!
फिर ये दौर करते हुए श्रावस्ती और वैशाली नगरीमें आंये।वहां
प्रचार करके वहुत आदमियोंको हकीकर्तका रास्ता दिखाया; फिर
2९ माय पहल आदमियाको हकॉकतका रास्ता दिखाया; फिर
१, हिलना चलना । २, इच्छुक । ३पैर्य । ४. चकित ।५. सत्पताका ।
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