संतबानी संग्रह भाग - १ | Santbani Sangrah Bhag - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
80 MB
कुल पष्ठ :
516
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कबीर साहिब &
भूठे सुख का सुख कहें,
जगत चबेना काल का,
कुखल कुसल हो. पूछते,
जरा! मुट्ठ ना समय मुझ,
्ण्
पानी. केरा.. जुदयुदा,
देखत ही छिपि जायगी,
रात गरँवाइं साय करि,
होरा जनम घ्मेररू था,
लूठि सके ता लुटि ले,
क १३४६, कक
काल कंठ त॑ पकरिहै,
श्ाछे दिन पाछे. णये,
सब पछतावा क्या. करे,
श्पाज कहै भ काल्ह भजंगा,
6
श्पाज काल्ह के करत ही,
काल्हू करे सो श्ाज कर,
पल में परले हायगो;
पाव पलक को सुधि नहीं;
काल सझचानक समारसी,
कबोर.. नोाबत. श्ापनी,
यह पुर पहन* यह गलो,
पाँच नैबत बाजतो,
से मंदिर खालो पड़ा,
कबीर थोड़ा... जीवना,
सबहि उभा* में लगि रहा,
ससिनगललवतुतेनरततेतरललमौनातत्मिसराललासलतमिकपिसस,.रकिलत नि रिमालसैलिक्कनमिरति प्यास ेमरसपवाकतममन्म्लीमनवतकशनकलनमडर
मानत हैँ. मन माद ।
कुद्छ़ मुख में कुछ गोद ॥ ३ ॥॥
जग से रहा न कोय ।
कसल कहां से हाय ॥ 9 ॥
उस मानुष की जाति ।
ज्योँ तारा. परमाति ॥ ४ ॥
दिवस गवाया खाय ।
काडड़ो बदले जाय ॥ ६ ॥
सत्त नाम भंडार ।
रोके दसो. दुवार ॥ ७ ॥
गुरू से किया न हेत।
जब चिड़ियाँ चुग गहंखेत॥ ८ ॥
काल्ह कहै फिर काल्ह ।
यौसर जासी चाल ॥ < ॥
श्शाज करे सा घब्य ।
बहुरि करेगा कब्च ॥ १०॥
करे काल्ह का साज।
ज्याँ तोतर को बाज ॥ ९९॥
दिन दस लेहू बजाय ।
बहुरि न देखे शझ्ाय ॥१२॥
हात छतोसा राग ।
बैठन लागे.. काग ॥९३॥
माँडे बहुत मंँडान ।
राव. रंक.... सुल्तान ॥१४॥
फिसला
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