जिनवरस्य नयचक्रम | Jinavarasy Nayachakram

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Jinavarasy Nayachakram  by डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल - Dr. Hukamchand Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिनवरस्य नयचक्रम्‌ नयज्ञान को आवश्यकता जिनागम के मम को समभकते के लिए नयों का स्वरूप समभना झावश्यक ही नहीं, श्रनिवाय है; क्योंकि समस्त जिनागम नयों की भाषा में ही निबद्ध है। नयों को समभे बिना जिनागम का मर्म जान पाना तो बहुत दूर, उसमें प्रवेश भी संभव नहीं है । जिनागम के श्रम्यास (पठन-पाठन) में सम्पूर्ण जीवन लगा देने वाले विद्वज्जन भी नयों के सम्यक्‌ प्रयोग से श्रपरिचित होने के कारण जब जिनागम के मर्म तक नहीं पहुँच पाते तब सामान्यजन की तो बात ही क्या करना? 'धवला' में कहा है :- “'सह्थि साएहि बिहुरं सुत्तं भ्रत्योग्व जिनवरमदम्हि । तो रायवादे शिउखा मुखिणो सिदुषंतिया होंति ॥* जिनेन्द्र भगवान के मत में नयवाद के बिना सूत्र भर भय कुछ भी नहीं कहा गया है । इसलिए जो मुनि नयवाद में निपुण होते हैं, बे सच्चे सिद्धान्त के ज्ञाता समभने चाहिए ।”' 'द्रवयस्वभावप्रकाशक नयचक्र में भी कहा है :- जे रायदिट्टिविहीसा ताल रा बत्यसहावउबलद्धि । वत्युसहावविहूणा.. सम्मादिट्टी कहें हुति ॥१८१॥ जो व्यक्ति नयदृष्टि से विहीन हैं, उन्हें वस्तुस्वरूप का सही जान नहीं हो सकता । और वस्तु के स्वरूप को नहीं जानने वाले सम्पग्दुष्टि केसे हो सकते हैं?” १ बला पु० १, खण्ड १, भाग १, माया ६८ [जैनेन्द्र सिद्धात्तकोश भाग रे, पृष्ठ ५१८ ]




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