सूर -प्रभा और सूरदास | Sur- Prabha Aur Sur Dass

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sur- Prabha Aur Sur Dass by दुर्गाशंकर मिश्र - Durgashankar Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दुर्गाशंकर मिश्र - Durgashankar Mishra

Add Infomation AboutDurgashankar Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सुरदास | रु पुचमी कही जाती टै परन्तु कतिपय विद्वान उनका जन्म १४५४० वि० सु० में सानते हैं । चौरासी बंण्णावों की वार्ता के अनुसार सूरदास गऊघाद पर जो कि आगरा व मथुरा के बीच है रहते थे तथा बल्लभाचार्य जी से मिलने के पूर्व सन्यासी हो चुके थे और अनेक दिप्य उनकी सेवा में रहते थे । साथ ही वे गाते बहुत अच्छे ढंग से थे अतः महाप्रमु से भेंट होने पर उन्होंने उनसे कुछ पद सुनाने के लिए कहा । सूर की जन्मभुसि के सम्बंध मे गोपाचल, मथुरा का कोई ग्राम, रुनकता तथा सोही नामक चार स्थानों का अनुमान किया जाता है । गोपाचल और गोपाद्ि ग्वालियर के प्राचीन नाम हैं तथा डॉ० पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल इसे ही सूर का जन्मस्थान मानते हैं । आचार्य शुक्ल और डॉ० इयामसुष्दरदास रुनकता को उनकी जन्मभुसि मानते है लेकिन वार्ता साहित्य के अनुसार दिल्‍ली से चार कोस दूर सीही ग्राम को सूर का जन्म स्थान कहा गया है जो युवितसंगत भी जान पड़ता है । वस्तुतः चौरासी दँप्गवन की वार्ता के भाव-प्रकाण में थी हरिराय जी ने ही प्रथम बार सूर का जन्म स्थान दिल्‍ली से चार कोस को दूरी पर सीह्ी ग्राम को साना था और गोकुलचाथ जी' के समकालीन 'प्राणनाथ' कवि में भी “अप्टबखामूत' में सीह्ी को ही उनकी जन्मशुमि कुंहदा है । सुर की जाति तथा वश भी विवादग्रस्त ही हैं और भाव-प्रकाश के आधार पर उन्हें सारस्वत ब्राह्मण कहा जाता है लेकिन उन्हें श्रह्ममट्ट, ब्राह्म- गंतर तथा 'डाढ़ी* और “जगा सिद्ध करने के प्रयास भी कुछ कम नहीं हुए परन्तु विचारपूर्वक देखा जाय तो सूर को सारस्वत ब्राह्मण मावना ही उप- युक्त होगा । सूर के परिवार के सम्बंध में अनेक आआमक कथन प्रचालित हैं तथा कतिपय विचारक तो बिल्वमंगल की कहानी को सूरदास के जीवन की घटना मानने का थी लोभसंवरण नहीं कर सके । हरिराथ जी के कथनानुसार कहा जाता हैं सूर छः वर्ष की आयु में ही घर से बिरकत होकर अपने गाँव से चार कोस दूर एक तालाब के तट पर पीपल के वृक्ष के नीचे रहने लगे और अठारहू वर्ष की आयु तक वहीं रहे । कहा जाता है एक जमींदार ने उनके लिए एक कुटी बना दी थी और भोजन का प्रबंध भी कर दिया था लेकिन बैराग्य- भग होने के भय से वे वहाँ अधिक समय तक न रह सके । यह भी कहां जाता हे कि वे जलौकिक प्रा थे मौर न केवल थे अपितु उनक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now