श्री अविधान राजेंद्र | Shri Avidhan Rajendra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
125 MB
कुल पष्ठ :
1233
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६)
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पवयण्थपीलुबघाता, पिसिया ताइ मजया इत्ति ॥
चादइ का महलगा, भणगति परिसहियाशं ज सब ।
सा होति मइलसा तु, जा पुण सुपरिद्टिआ चरण ॥।
ामिधासराजन्दर:
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डी । ('झाउच्चपोद शब्दे डश्मिसय भाग विशषा गतः)
अझइच-आदीप्त-त्रि० । इंचई-स,. शा० ! छुण है ० |
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तथहों तु सलाहती, घगति गुण य एसु जु्ता नि । अइत्त-झादाय-सव्य० । गृद्दीस्वस्यर्थ, झाखा० १ शुल छ
सुड्टकरे तप्पहितं, जा पुण करगे अजुसा उ ॥
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मणणुति खत्थि कि पुर, आयरियजिशकप्पिता55इप्मं ॥। '
आहारउवहिदहे, खिरविकखो खवरि खिजरांपही ।
संघयग्यत्रिरियजु्ता, श्राइय आायरति कप्प । प० भा०
५9 कल्प ।
उयाणि भ्ाइसग-सखाइसएफकप्पा ससे खब जति | गाहा-
व्याहार खउक्क--झाहारा खर्ाब्चिहा जत्था 5 5इरणा सस्थ
नड़त्थि दासा | जहा-लिंधण-पाग्गलें । उत्तरायह-वियड़े ।
सबाल-दामलखु ( द्राचचपु ) | फासु चत्थादि | इरागप-
मसखाइसए । पे स्तस, काल वि । ज्ासारयरियाण सब्वयाई
प्प्राइससाई | उचसरण जहा-सिधूण-लाउ | पोडवखर दु-
कुला | सुर््राप-कालपंबलीशा । महारद्रागो-जलपूरगा । ।
प्यमाइ जन्या 5 इइरगाणि तस्थ कप्पा । इयरथधा क्ारणणण
कप्पन्ति । साहा-- इस स्यउ ' आइरण पुर ' खउ-
चग्मा
मगा-अगाइगहें पुर वियडाइ अरुयाइसु मइत्वणणा । फपए लि-
खडमझा गिहस्था वियरेंति अप्पणा अर्पिविला | सहा पान
लिनखसराइंगा ये पचयरपीला भव | चिपरिंगा- .
ग्गलत ज्थ गे चित्त तत्थ मगइ लागा-प्ासि सड़पढ़ियस्मि- ,
ठत्थ चागेति सा पार्गले खाह | अदिसगा य हाह | सब्य-
मफास केंयये । असउ्कादियातं पस्सा पीला । गाहा-का ?
सइलगा प्रचयन उद्यत सूचाण:नमतिषधघमायन्ति सा स-
दलगा । करगजुलसु पुग पवं ना मयइ । हां खुददू पये ।
साई ्फरगाजुत्ता पुर संसध्ा भव । किमस श्रप्पच्छ-
न्दण वगइ ?. उयपला पशसा। एवं ससा भय | झाह-
[ज़णकपष्पे किलि आइसदसनिथि । साहा- श्ाहारायहि |
उच्यत-आहारावदिददखु सा भयवे निरवकस्वा, से कयले
1लज्जरा, माफ वर्लविरियसेघयग,जुसा अआइसईं कप्पसघ
शायगद । सद थि ्ाइरह जिरपकष्पियपा उससे ते आखरइ ।
सास झाइसहकप्पा | पेन ब्लू ४ कटूप ।
व्ाइष्महय - अतकीसुहय - पु । आकी गा -गुरदरयाप्तिः सा ला-
सो हयक्व आाकीगाहय | क८ सन । जात्य धश्यविशय, सा चल
जवचिनया दियुगापतः 1 * अइरसाहय बच निरूचलव यथा
जात्याउएवा सूजपुरी पाय नुपालिसगात्र: | जीन हे प्रति० 5
व ्८ |
ऋ इतित्थयर-झादिती थेकर - पु । ऋष नदबस्वामिनि, भर
लता उस्हसामिस्ख ऑआइतिस्थयरस्स् | ने० छडे सूत्र |
अआइतिव्थयरमंडल- झादिती थेकर मर इल -न । सयांसन
आते श्ादितीथ्ेकरस्य पीठ, आण्म० १ अन 3५४४ गाथा-
व ९ उ० 1५८७ सूत्र ।
अआइडू-आधविद्ध- जि? । आ-व्यघ-क्त । मेरिते, दशे० ४ तस्व ।
ताडिन, चिद्ध, छिद्रिते, सिस ख । याल० ।
आंदुस्ध-्रि९ ! व्याप्त, क्ञा० रे ऋण रै अब ।
अआइदाण-श्रादान-न० | बरस, प्रशन० के ।
अझाइचम्मिय-झादिघ ( था ) मिंक-पु । पनत्संक्षया प्र
लिखे अपुनधन्धकापरपण्याये प्रथमारव्धस्थूलधर्मायरर ,
चग्। | धर्मसेघड़े गूहर्थघर्मायुक्षत्वेतज्नप्षणाद प्रतिपादि-
तम् ।
अथ पूर्वाक्णुगवत एव संशायिशदविधि, तद्बस्था-
विशषधविधि था5ह-
स सादिधािकश्ित्र -स्त त्तत्तन्त्राजुसारतः ।
इह तु स्वागमापिच्षं, लचय परियृद्यत ॥ १७ ॥
सः-प्रयोक्गुसेरुतरासरगुणव द्धियाग्यताधान दि मि
कर-प्रथममचा रब्घस्थुलधर्माचारन्वनादिधामिकस जया प्र-
सिद्ध, स ख तानि तानि तन्त्राणि-शास्थाणि सदलुसास्त-
श्वि्ना-विसिावबारा सयति । मिाचारस्थितानासप्यस्तः-
शुद्धिमताम पुनर्बन्घकन्वा दबिरा घास , झपुनयन्थकस्य हिना
नास्वरूपत्या तू तससन्त्र।क्ला अप माच्ा था क्रिया घटत | न दुकक
यारगविन्दों -झपुथन्धकरस्येदे, सम्यगुनीत्यापपदयत । ततक्त-
स्त्राक्कमास्विल-मचस्थासद्सशयादू ॥२४५१॥' इति (अस्य ब्या-
स्या ' अरुद्टाण ' शब्द प्रथप्रभाग ३७७ पृष्ठ गता) | इह तु
प्रकम स्वागमापक्ष-स्थारमानुसारि लगा '- व्यजक प्रक्रमा-
दादिधारतिकस्य ' परियुह्त '-आश्रीयत । या हाम्य: दिए -
बाधघिसस्यनिखूत्त प्रछूस्यधिकारा दशब्द्रमिघीयते से पवा-
स्मािरा दिधार्मिक्रापुनसन्घकादिशब्देरिति भायः । लक्तण-
मिस्यजेकचखन जात्यपद , नहनकणसपादनविशधिश्याय मुक्ता
सलिसविस्वरायामू-'' परिहसेंडया 5कलपा गा मिश्रयाग: । सर
विसदयानि कल्याणमिज्रहाणि । से लह्वनीयोखित स्थिसि:, ।
अपत्ितब्या लाकमार्ग, | मसाननीया गुरुखंहति: भन
विलव्यमतसन्त्रण , प्रयलितब्य दानादो, । कसब्पादार पूजा
मगबताम् । निरूपसीय: साचुविशपः । श्रातव्य विधिना
घ्मशास्थम् । मावयसी ये महाय त्नन । प्रवर्तिसरय्रमू-विधानतः ।
अचलम्बनीयं घेयम् । परयालाचनीया अआर्यातः | अवलाक-
नाया खुन्युः । सचितब्य परलाकषधघानन | सावेतब्या शुरु-
जन: । कसब्द यारपटद्शनमू । स्थापनीय लद्पादि लत ।
निरूपयिलदपा धारणा | पारिदतद्या विक्षपमा से: । यालिलट्ये
यागासिद्धा । क्रारयितब्या भगवत्पतिसा! । लखनीये भुवन-
इंवरचचनम | कतब्या महल चाप: प्रासफलब्य चतुःशरणमू ।
गडितब्यानि बुष्क्तानि | झनुमादनीय कुशलमू । पूजमीया
मन्त्रदबता: । श्ञातदपानि सच्चाप्तानि । भावनी ्रमोदायमू ।
वचचसितव्यमु्तमज्ञन।स)न। पएवंभूसस्य यह प्रयूति: सा सरपेय
साध्वी । मार्गाजुसारी हाय नियमादपुनरवन्घकादि: । सद-
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