भारतीय संस्कृति का प्रवाह | Bharatiy Sanskrati Ka Prawah

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Bharatiy Sanskrati Ka Prawah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतोप सर्कृति की विशेदतायं 4 जिस प्रकार विभिन्‍न जातिया था यह मिश्रण भारतीय विरेषता है इसी प्रकार भारत की मापामो का मिश्रण भी उसको भ्पनी ही वस्तु है । भारत म भाषायें घनेक हैं भौर मिन्‍न धणियो से सम्बंध रखती हैं परन्तु प्राय सभी प्रान्तो म वह एक दूसरे से मिल गई हैं । भाप उत्तर से दक्षिण की धोर जाइये तो प्रत्येक भाषा भपनो पशौसी भाषा से मिश्रित हुई पाई जा+गी । परिणाम यह है कि यधपि दूर जागर एन भाषा दूसरी से बहुत दूर हुई प्रवीत होती है परन्तु यदि सारी श्यखता का ध्यान से भप्ययन करें तो सब एक-दूसरे से सम्बद्ध टिस्वाई देंगी । पंजाबी दिल्‍ली लखनऊ की उदू मिशित दिदी, भवधी हिनी विहार हिल्‍ी गुजराती मराठी कननड भादि तथा उड़िया बगला भादि सर्व मापाधों का क्रमगा मिलान बरते जाए तो हम उन्हें परस्पर वडे गहरे सूत्र से घधा हुआ पायेंगे । भर सबसे प्रवस सूत्र जो सोने थी स्द्रवला वी सरह उन्हें परस्पर जोड़ रहा है बहू सस्कृत भाषा मा सूत्र है । सस्इत मापा ने बाइ्मीर से कन्याकुमारी तक भारत थी सब श्रणियों को एक प्रवल सास्कृतिव साला म पिरो रखा है । भारत की यह विगेषता भारतीय सस्कृति के उदार हप्टिकोण उसके सचकीलेपन श्रौर भादान प्रदान दाकति का परिणाम है । (४) भाप्यात्मिक्ता--मारतीय सस्कति की भन्तिम परन्तु सबसे बढ़ी विधेषता यह रही है कि नई-नई परिस्थितियों क॑ कारण कभी-कभी थोडा-बहुत परिवतन होने पर भी उसका मुस्य भाघार सटा भ्राष्याह्मिक रहा है। यहाँ तप को धस्त्र-वल से साय को घालागी से भौर घम को भय से सदा ऊँचा स्पान टिया जाता रहा हु। झाटि से लेकर वतमान काल तक जितने भाचाय हुए हैं उदहोंने 'भटिसा परमों घम को भ्पना भूलम ज बताया है। यद्यपि भत्याचारियों भौर पापियों के दमन के लिये कषियों को युद्ध बरने का भधिकार दे दिया गया था. परन्तु वह हिसा नह्दी मानी जाती थी । उसका उद्प्य भारम रक्षा था । भ्रपते स्वाघ-साघन




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