किसने मेरे ख्याल में दीपक जला दिया | Kisane Mere Khayal Me Deepak Jala Diya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उच्चादर्शों की मंदाकिनी
उपाध्याय गुप्तिसागर जी नैतिक मूल्यों और उच्च आदशों के प्रति समर्पित कुशल लेखक
एवं कवि हैं। आपकी लेखनी और चाणी ने सदा उच्च आदशों की मंदाकिनी को प्रवाहित किया
है।
प्रस्तुत कृति “किसने मेरे ख्याल में दीपक जला दिया?' ललित निबन्धों की एक
महत्वपूर्ण कृति है। जिसने मानव के अन्तस् को छुआ है। सुप्त संवेदनाओं को जगाया है।
योग्यता का अभिनन्दन ' स्वावलम्बन, चिन्ता और चिंता, मानसिक प्रदूषण से बिंगड़ता
पर्यावरण, सदाचार. जीवन शुद्धि का बीज, हाइपरटेन्शन, गर्भपात, किसने मेरे ख्याल में
दीपक जला दिया?, बादशाहे जैन का यह महिर था दरबार है, णमोकार मंत्र जीधन की
संजीवनी घुड़्ी, आओ! विचारे विचार पर, मन - घिंचारों का विश्वविद्यालय, शुद्धाचरण वाली
शिक्षा ही श्रेयस्कर है, नारी तरुवर की सघन छांव आदि-आदि मिबन्ध ऐसे हैं जिनकी आज
नई और पुरानी, युवा और वृद्ध दोनों पीढ़ियों को नितान्त आवश्यकता है। उपाध्यायश्री का
साहित्य अंजन की भौंति भौतिकता की चाक चिक्य से धुंधली हुई आंखों की धुन्ध मिटाकर
दृष्टि को निर्मलता प्रदान करता है।
साहित्य भारती प्रकाशन का यह उद्देश्य है कि जो साहित्य चरित्र निर्माण करता हो एवं
मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठापित करता हो उसी का प्रकाशन किया जाये। उपाध्याय गुप्तिसागरजी
की सौलिक कृति 'किसने मेरे ख्याल मे दीपक जला दिया?' साहित्य भारती प्रकाशन का
प्रथम पुष्प है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि लेखक ने सरल और सहज लहजे मे
अपनी बात पाठकों तक पहुँचायी है। आपके विचारों तथा भाषा शैली में कहीं क्त्लिष्टता,
जटिलता नहीं है। पाठक सहज प्रवाह में पढ़ता हुआ बहता चला जाता है।
इस कृति की सर्जना में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जिनका सहयोग रहा उन पूज्य ऋषियों
के पादपझमों में कृतिकार की प्रणति एवं शेष सहयोगी-सुधियो को साधुवाद।
इस निर्दोष मुद्रण यात्रा में सबसे निकट सहयोग रहा ब्र. बहिन रंजना शास्त्री का। इनके
लिए मेरा यही शुभाशीष है कि वे दीघष्युक एवं स्वस्थ रहकर संयम पथ पर अधिरल अग्रसर
होती रहें। साहित्य भारती प्रकाशन के संयोजक एवं सहयोगियों के लिए 'इस प्रयास हेतु हार्दिक
धन्यवाद। साथ ही स्वस्थ एवं सम्यक मुद्रण हेतु भाई विजय जैन, विकल्प प्रिटर्स, देहरादून, को
साधुचाद।
उपाध्यायश्री के श्री चरणों मे अनेकश वन्दन। आपसे यहीं अपेक्षा है कि आप इसी
प्रकार के जनोपयोगी साहित्य द्वारा मानव समाज का ज्ञान-पथ आलोकित करते रहें।
4 दिसम्बर, 1996 सिद्धान्तरत्न ब्र. सुमन शास्त्री
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1५४ किसने मेरे ख्याल में दीपक जला दिया?
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