कविता रत्नाकर | Kavita Ratnakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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डोर उमते हैं और रंग रूप भी दोनों के समान ही देते हैं,
परन्तु इनकी मिन्नता फछ से जानी जाती हे )।
लाभ: पर गोबघ: ॥ १४ ॥
शण्डीगोश्रयोविचाय मनसा कटकाशन यत्मया उक्त-
स्तद्विपरीतक छुतमहों गो: खौरमात्रं ददों 1 नाये। मुखेजना-
उये न च सुख नो वा पशों ठभ्यते सदध कविभूपती हरिहरे
उामः पर गोवा ॥ इतीविहासः ॥।
एक वैध किसी एक मूखे की चिकित्सा कर उसके
फल में विपरीत फठ देख दुःख से चोढा कि गोखुरू को
काउ़ा मैने बताया, पर उस सरख ने गोखुरू का अर्थ न समझ
गो के खर को काट कर का में दिया । अतएव पूर्व के यहीं
धन, सख, यश और आदर कुछ भी नहीं मिछता। हरे !
हरे ![ लाभ यह हुआ कि व्यर्थ को गोहत्या हाथ कगी ॥
उन्यज् |
पद्चास्यस्य पराभवाय भपकों मसिन गोमूयसा दब्यक-
रपि पायसेः प्रतिदिन सम्बंधित यो मया । सोय॑ सिंहरवाई
सहान्तरगमद भीत्योकुछ: सम्घमाइ्न्ताशा वियं गता इत
सिधे ठामः परे गोवपः 1 इतीतिंदास
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