विद्यापति ठाकुर | Vidhyapati Thakur

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Vidhyapati Thakur by गोविन्द - Govind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समकालीनराजवंश १७ न विद्यापति-सम कालीन पिधिला फे रॉजायं का अआति- _-....'... 2. संक्षिप्त श्िवरश / _ सबसे प्रथम मिथिला के ऐतिहासिक राजा नान्यदेव थे । किसी कारण कायणांट देश: को छोड़ १०१६ शाके-अ्र्थात्‌ १०६७ इईस्वी में इन्होंने सीतामढ़ी - रेलवे, स्टेशन से कुछ ्रागे* कोइली नानपुर श्राम के समीप सिमरॉवगढ में अपनी राजधानी ' बनाई । इसी स्थान पर नान्यदेव तथा इनके वंशजों ने लंगमग, २२६ चर्ष राज्य- किए । इनके- बाद 'प्रिथिला का राज्य सैथिल जाहाणों के आ्ाधिपत्ये में श्राया । ' ये सैथिल' ब्राह्मण ओइनी ग्राम के उपाजक थे और इसी लिए ये सब - “व्रोइनिवार” ब्राह्मण कहलाते ये | यह-'आओइनिवार' या “श्रोइनी” बंश बहुत ही प्रुलिद्ध है । इस वंश के लोग ब्राह्मण पंडित होते हुए , भी युद्धक्ेत्र में शत्रुओं के साथ बड़ी वीरता से लड़ने वाले हुए । उन दिनों सुल्तान फ़ीरोज _ शाह ( १३४१-८८ ) के अधीन सिथिला का राज्य हो गया था । सब से पहले च्ोइली य्रामोपाजंक, नाहठाकुर के अतिवृद्धप्रपोत्र राजपड़ित सिद्ध कामेश्वर «को राज्य दिया गया * । कितु उन्होंने राज्य को अपनी तपस्या में विध्नस्वरूप जान कर उसे स्वीकार नहीं किया । शत उनके ज्येष्ठ पुत्र भोगीश्वरठटाकुर, 1 ्यण्णणणणययद्ध/ण्ण्णणणामभा १ झ्फोइनी बंसल पसिद्ध जग को तस करई से सेव । ढुट्॒ पएक्कत्थ न पाधिदद ' भुभवद झारु भूदेव ॥ -र्“'कीर्तिलता”, परलच २ ९ ताकुल केरा चड़िपन चाचा कद्योन उपाए । - ..... जज्जस्पिझ्र उप्पत्नसति कासेसर सन राय: ॥ “घीतिलता , पटल १ डे न




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