आकाश की रंगीनियां | Aakash Ki Rangeeniyan

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Book Image : आकाश की रंगीनियां  - Aakash Ki Rangeeniyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आकाश की यह छत श्श् के साथ-साथ बदलती रहती है। वर्गीकरण की सभी विधियों में वायुमण्डल कई खोलों का बना माना गया है जो कि पृथ्वी को ढके रहते हैं । सबसे सामान्य विधि, जिसका वर्णन हम सुख्य रूप से करेंगे, तापक्रम पर आधारित है । पहला और सबसे नीचे का खोल ट्रोपोस्फियर कहलाता है और यह समुदतल' से लेकर लगभग सात मील की ऊँचाई तक फैला हुआ है । पृथ्वी के सारे स्थान इस क्षेत्र में ही पड़ते हैं यद्यपि माउण्ट ऐवरेस्ट अपनी ऊँची चोटी लगमग इसकी सीमा तक उठाये हुए है । ट्रोपोस्फ़ियर से वाइस मील तक की ऊँचाई का क्षेत्र स्ट्रेटोस्व्िर कहलाता है तथा स्ट्रैटोस्फियर से पचास मील तक मिजोस्फियर है 1 उचसे ऊपर स्फियर २५० मील तक फैला हुआ है ओर उससे परे का झेत्र एक्टोन्फियर हैं अमुबन्ध “'पाज” किसी खोल की ऊपरी सीमा को सूचि करने के लिए असक मिया जाता है । इस प्रकार ट्रोपोपाज, ट्रोपोस्फियर और स्ट्रेटोर्स्यर पाज, स्ट्रेटीस्फियर तथा मिजोस्फियर के मध्य वी इत्यादि भी दिये गये है, जो कि उनकी प्रमुख विशेषताओं स्फियर एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें ओजोन गत प्रचुर केमोस्फियर क्षेत्र में सुयं के विकिरणों द्वारा होने व महत्व की है. । इसी प्रकार आयनोस्फियर उस क्षेत्र दो बरे प्राप्त अस्थायी अ्णुओं तथा मायनों का मियद हैं 1 दे विद्युत आवेश रहता है । पर




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