मिर्ज़ा ग़ालिब | Mirja Galib
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
71
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्जा नौशा को गले से लगाते हुए माँ बोली--''बेटा, तेरे चचा जान बेहोश
हूँ? '
“यों, कैसे, क्या हुआ ?'' एक ही साँस में असद मियाँ ने अपनी माँ पर
प्रश्नों की बौछार कर दी ।
माँ ने आँचल से अपने आँसू पोंछे और बोली--'तेरे चचा जंगल में
शिकार पर गए हुए थे । हाथी से नीचे शिर पड़े । सिर में बहुत चोट भाई है । आँख
तक नहीं खोली ।''
मिर्जा नौशा की माँ अभी बता ही रही थी कि अचानक रोने की आवाज़ से वे
भाँप गई कि वे चल बसे । वह थी ज़ोर-जोर से रोती हुई अंदर की ओर चली गईं ।
मिर्जा नौशा के नीचे से तो मानो जमीन ही सरक गई। सर पकड़ कर वहींब्रेठ गया ।
मसरुत्ला खाँ वेग का अंतिम संस्कार सामंती ढंग से हुआ । उनके बहुत से
संबंधी इस अवसर पर आगरे आए । उनमें लोहारू के नवाब अहमद बर्श खाँ भी
दिल्ली से आए थे । अहमद बरूश ने मिर्जा नौशा को धीरज बँधाया और उनकी माँ
से कहा, “आप लोग अब यहाँ से दिल्ली चलें और वहीं हमारे साथ रहें ।''
मिर्जा नौशा ने कहा, “वहाँ हमारी गुजर कंसे होगी । इतना पैसा कहाँ से
आएंगा।''
अहमद बरुश खाँ बोले, “हम लोग तुम्हारे लिए मर तो नहीं हैं । तुम लोग
हमारे पास रहना । मैं अंग्रेजों से वात कराऊंगा और पेंशन का इंतजाम करूँगा । मु
आशा है कि तुम्हारे घर वालों के लिए १०,००० रुपए सालाना पेंशन मंजूर हो
जाएंगी ।'
मिर्जा नौशा को निराशा के अंधकार में आशा की किरण दिखाई दी । मिर्जा
नौशा तो अहमद बरुश खाँ के साथ दिल्ली चले गए और अगले पाँच साछ के दौरान
दिल्ली और भागरे के बीच चक्कर लगाते रहे ।
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