युक्त्यनुशासनम | Yuktaynu Shasanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)० युक्त्वमुशासम
चीरके स्याद्ाद-शासनकों निर्दोष एवं अद्वितीय बतलाया गया है वह
युक्त है ।
कारिका ३५-३६ में चार्वाकों ( भौतिकवादियों ) की उस प्रवृत्ति
( मान्यता ) की, जो “दिदनोदर-पुष्टिुष्टि -'खाओ-पिबो और सजा-
मोज उड़ाओरूप है और लोकको पतनकी ओर ले जाने वाली है, मीमांसा
की गयी है ।
कारिका २३७,३८ और ३९ में प्रवृत्ति रक्त एवं दाम-तुष्टिरिक्त मीमांस-
कोंकी उन अनाचारसमर्थक क्रियाओंकी भलोचना है जिनमें मांसभक्षण,
मदिरापान और मंथुन-सेवनको दोष न मानकर उनका खुले आम समर्थन
किया है ।' समन्तभद्र कहते हैं कि उक्त प्रवुत्तियाँ निदचय ही लोकके पतन-
को कारण हैं, क्योंकि जगत् स्वभावत: स्वच्छत्द वृत्ति है और उसे कहींसे
समर्थन ( असद् वृत्तियोंको विघेयताका प्रोत्साहन ) मिल जानेपर और
अधिक स्वच्छन्द ( स्वेच्छाचारी ) हो जाता है । अत: इस तम (अज्ञानान्घ-
कार) को दूर करनेके लिए दाम, सन्तोष, संयम, दया और समाधिरूप
वीर-शासन ही सुप्रभात है ।
इस प्रकार संक्षेपमें इस प्रस्तावमें एकान्तमतोंको सदोष और अनेकान्तमत
( वीरशासन ) को निर्दोष युक्तिपुरस्सर प्रतिपादन किया है । विस्तारपूर्वक
इन दोनोंका कथन समन्तभद्रके देवागमसें उपलब्ध है ।
२. प्रस्ताव--इस प्रस्तावमे ४०-६४ तक २५ कारिकाएं है । ४० से
लेकर ६० वीं कारिका तक २१ कारिकाओंमें वीर-जिनके द्वारा प्ररूपित
अथंतत्त्व ( वस्तुस्वरूप ) का सयुक्तिक विवेचन किया गया हैं, जिसका संकेत
“अमेद्मेदारमकम धतरवं' ( का० ७ ) इस कारिकामें उपलब्ध है । वस्तुत:
इन कारिकाओंमें, वोर-शासनमें वस्तुका स्वरूप किस प्रकारका व्यवस्थित
है, इसीका मुख्यतया प्रतिषादन है--एकान्तवादोंमें स्वीकृत वस्तुस्वरूपका
१. न मात-मन्नणे दोषों न मद्ये न च मैथुने ।
अ्रदत्तिरषा भ्रूतानां ** * ***॥
नउद्धत, युनत्य० टी पू०्द३1।
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