दीर्घा | Deergha

Deergha by योगेन्द्र नारायण - Yogendra Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सीता देवी सन 1976 मे रसीदपुर की गगा देवी तथा 1980 मे रॉटी ग्राम की गांदावरी दत्ता को तथा 1982 मे महासुन्दरी देवी और लहिरिया गज की शान्ति दवी शिवन पासवान को सन 1986 मे हस्त शिल्प पुरस्कार मिला । भारत सरकार ने मिथिला चित्रकला की सेवा के लिए सन 1975 मे जगदम्बा देवी तथा 1981 मे सीता देवी ओर सन 1984 मे गगादेवी को पदमश्री की उपाधि से अलकृत किया | समय-समय पर अन्य सस्थाओ ने भी यहाँ के अनेक कलाकारों को भी सम्मानित किया हे। यहाँ के कलाकार विदेशों मे आयोजित होने वाले भारत-उत्सवों मे. भी भाग लेते रहे हे | अमरिका ब्रिटेन फ्रास जापान इटली जमंनी सोवियत सघ के सास्कृतिक आदान-प्रदान कायक्रेमो मे यहाँ के कलाकारों को भेजा जाता रहा है । विदेशों मे मिथिला शैली के चित्रो को भरपूर प्रशसा मिली है। उपरोक्त प्रतिष्ठित महिला कलाकारों के अलावा यहाँ जितवारपुर की अनमना देवी बौआ देवी चन्द्रकला देवी त्रिपुरा देवी बच्चू देवी | 4 हा व हीरा देवी और रॉठी ग्राम की 5: अल उर्मिला झा कर्पूरी देवी ले. सावित्री देवी श्यामा देवी शशि देवी प्रेमलता देवी सतधारा सीमरी की जानकी देवी ओर रामप्यारी देवी भवानीपुर की चद्रमा देवी रहिका की पूना देवी एव त्रिवेणी देवी रामपटटी ग्राम की सुनन्दा चौधरी यशोदा देवी आदि महिला मिथिला लोककला चित्राकन मे सलग्न है । हरिजन महिला-चित्रकारो ने अभी भी परम्परागत ढग को अपनाए रखा है। बिहार के मिथिलाचल क्षेत्र की यह कला शैली बिहार का गौरव बनकर रह गई है। सन 1948 मे भारत की लोक कलाओ और लोक शिल्पो का प्रदर्शन लदन मे पहली बार हुआ। मिथिलाचल की चित्र शैली को देखकर कला मर्मज्ञ आश्चर्यचकित रह गए। इसके बाद यहाँ की कला का विस्तार विश्वस्तर पर छाने लगा। धीरे-धीरे कलाकार स्वात सुखाय रचना करने के बजाय अर्थोपार्जन के लिए रचना सामा चकेवा एक लोक त्यौहार का भित्ति चित्रण करने लगे। यहाँ की कला विश्व के अनेक भागों जैसे अमेरिका ब्रिटेन कनाडा पोलैण्ड जर्मनी जापान भेजी जाने लगी । भारतीय हस्त शिल्प बोर्ड के मर्मज्ञ कलाकार भास्कर कुलकर्णी ने इस कला के महत्व को पहचाना और मिथिलाचल मे घूम-घूमकर यहाँ के कलाकारों और कलाकृतियो को देखा। उन्होने हस्तनिर्मित कागज पर यहाँ की महिला कलाकारो से चित्र बनवाना प्रारम्भ कर दिया। धीरे-धीरे जितवारपुर की सीता देवी जगदम्बा देवी ऊषा देवी यमुना देवी और रॉठी की महासुन्दरी देवी की पहचान बनने लगी। सन 1965 मे उपेन्द्र ही पा महारथी तथा 1972 मे तत्कालीन विदेश व्यापार मत्री न््न | ललितनारायण मिश्र के अलावा कब | फलादिद पुपुलजयकर आदि ने बी इस लोककला शेली के सः का प्रचार-प्रसार मे भरपूर योगदान दिया और यहाँ की लोककला शैली देश और विदेश मे लोकप्रिय होने लगी | है हा भारत की प्रख्यात कला है. समालोचक श्रीमती कमला देवी है. चटटोपाध्याय डॉ मुल्कराज ब, आनन्द राजिश्वर नारायण सिह आदि ने मिथिलाचल क्षेत्र की न लोक कला का उध्ययन कर बे यहाँ की कला सम्पदा की भूरि-भूरि प्रशसा की है। सन 1972 मे श्रीमती पुपुलजयकर ने यहाँ की महिला कलाकारों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की तथा शशिकला देवी को आध्र प्रदेश के चिटटूर स्थित ऋषि वैली स्कूल में मिथिला-चित्रकला के अध्यापन के लिए नियुक्त किया गया | सन 1978 से 1981 तक फ्रास के कला मर्मज्ञ विकी ने यहाँ की कला पर द आर्ट ऑफ मिथिला' पुस्तक लिखी जिसका प्रकाशन लदन से हुआ । इसके अलावा जर्मनी कनाडा फ्रान्स के अनेक कला मर्मज्ञो ने यहाँ की लोक कला को देश से बाहर प्रतिष्ठित करने मे अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज भी व्यावसायिक दृष्टिकोण से अनेक कला दीर्घाओ मे यहाँ के चित्र देखे जा सकते है। मिथिला के समाज मे आज भी सस्कारो मागलिक पर्वों और उत्सवो मे यहाँ की लोक चित्र शैली अपना स्थान बनाए हुए है। चित्र साथार - मिथिला की लोक चित्रकला सफलताएँं-असफलताएँ लेखक - अवधेश अमन ललित कला अकादमी नई दिल्‍ली 1992 दीर्घा, अक्टूबर 2000 16




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