शरणागति रहस्य | Sharanagati Rahasya

Book Image : शरणागति रहस्य  - Sharanagati Rahasya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ँ हुई. भापकी चीज रही है ? आपने वो कन्यादान कर दिया । भव वह दुसरों की हो गई फिर अब वह जाती हे तो आप क्यों रोते हो ? परन्तु रोना आ जाता है । छोरी की मां के आंसू आता है । छोरी के आंसू आता हे। तो आँसू भाने से बया वह आपकी हो गई ? कारण क्या हे कि इतना दिन वह साथ में रही इसलिए अपनापन दीखता है। विवाह करने मात्र से अब उससे अपनापन वह नहीं रहता जितना कि विवाह से पहले अपनापन था । इसी तरह अभी मन-बुद्धि-इन्द्रियां दारीर से अपनापन दीखता हे वह अपना नहीं सानने से इससे अपनापन हट जायेगा । इनमें अपनापन दीखता हे अपनापन हें नहीं । ये हमारे नहीं हे इस पर दृढ़ रहो । जेंसे अब क्या हमारी नहीं हे इसी प्रकार शरीर इन्द्रियां मन बुद्धि हमारो नहीं हैं बल । और कन्या भी यही मानती है कि मेरा तो घर यह नहीं हे मेरा तो ससुराल वाला घर है । यह तो मेरे पिता।जी का भेया घर है मेरा नहीं है । यही गुरु-दिष्य का सम्बन्ध होता हे । हमारे यह गुरु हैं बस मान लिया अब उसके लिए अभ्यास करना पड़ता हे क्या ? मान लिया तो मान लिया बस । जब तक हम उस मान्यता को नहीं छोड़ेंगे तब तक छुड़ाने की ब्रह्माजी की भी ताकत हे दया ? तो माना हुआ सबध भी जब इतना दृढ़ हो जाता हे तो परमात्मा का तो सबेध स्वतः है ममैवांशो जीवलोके गीता १५७ । इस वास्ते इसे मान लें कि परमात्मा हमारे हैं और नरोर इन्द्रियां मन बुद्धि हमारी नहीं है बस । आप माने तो भी परमात्मा हमारे हैं। नहीं माने तो परमात्मा हमारे है । बात तो यहीं सच्ची है । अब केवल मानने की जरूरत है। आप जानो चाहे न जानो । मानो चाहे मत मानो बात तो यही रहेगी । केवल गठती को न मानना ही है । और कुछ नहीं बस । अब उसके लिये देरो का क्या काम है ? केवल इधर ख्याल कराने वाले ही सत सि1 इेसरिजेसए ण नारायण नारायण दसरिजे सरदारशहर घोरा १४ जलाई ७६ प्रातः ४




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now