फूलों की डाली | Phoolon Ki Dalee

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Phoolon Ki Dalee by राजनारायण चतुर्वेदी - Rajnarayan Chaturvedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजनारायण चतुर्वेदी - Rajnarayan Chaturvedi

Add Infomation AboutRajnarayan Chaturvedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
परतो दिले सोजां में हे उस जुव्फ खियहका । चैसाख्म सावनंकी घटा देख * रहे हैं ॥ “नह” नारी दिल छोटता है तोवा इधर टूट रही है। मबखाने पर हम आज घटा देख रहे हैं || 'आजाद' कलकत्ता । छाई हुई गुलशन पे घटा देख रहे हैं। आई हुई तोवा पे बला पे बला देख रहे हैं ॥ एक अपनी बुराई तो नज़रमें चहीं आती | हर चोज मगर उसके सिच्ा देख रहे हैं ॥ अदीव”लखनवी |. रफ्तार सिसेदही है तो खंजर है तबस्खुम । कातिल तेरी एक एक अदा देख रहे हैं॥ 'निहाल' स्योद्दारवी जी खोलके मातम भी कोई कर नहीं सकता। . '. ' सुदद उनका मेरे अहढे अजा देख रहे हैं ॥ पद कह नहीं सकता चह कोई खुन नहीं सकता । भांखोंसे जो हमे खुबहों साम देख रहे हैं ॥ नहा नहीं इस्जामे मुहब्बत था उन्हीं पर । कुछ इसमें दम अपनी ख़ता देख रहे हैं॥ नह” नारवी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now