वैदिक प्राण विद्या | Vaidik Pran Vidhya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.96 MB
कुल पष्ठ :
115
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ं
1
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तप” 2५
मर पा
सवंरध्षक प्राण । १३
इस शरीरके दो प्रेममय कार्य हैं । प्राणतते शक्तिका संत्रधन
ता हैं और अपानसे विषको दूर करके स्वास्थ्यका संरक्षण होता
प्राणके अंदर एक प्रकारका “ भेषजे '” अधांत् ओषध है
को दर करनेकी शक्तिका नाम ( दाष-घ ) औओष-घ अथवा
घन हाता हू । रारारक सब दृ।षष दर करना आर वहा शारारम
अं :
' आरोग्यकी स्थापना करना, यह पवित्र काये करना प्राणकाही धरम
है
हैं । प्राणका दसरा नाम “ रूद्र ” हैं ओर रुद्र शब्दका अथ वेद्य
भी होता हैं । इसका वणन “ रुद्रदबताका पांरंचय '' और
' ऋग्वेदम रुद्रदेबता ” इन दो पुस्तकाम विस्तारते किया है ।
पाठक वहां ही इस विषयको देखें । इस प्राणमें औषध हैं, यह वेद्का
कथन हैं । इसपर अवदय विश्वाप्त रखना चाहिए, क्यों कि यह
विश्वास अवास्तविक नहीं है, अपनी निन शक्तिपर विश्वास रखनेके
समानही यह वास्तविक विश्वास है । मानस चिकित्साका यह मूल
है, पाठक इस चृष्टिसे इस मंत्रका विचार करें । अपनी प्राणशक्तिस
अपनीही चिकित्सा की जा सकती हे । में अपनी प्राणशक्तिसे अपने
रोगेंका निवारण अवइय करूंगा, यह भाव यहां घारण करनेसे बडा
लाभ होता है ।
(७) स्वरक्षक प्राण ॥
प्राण। प्रजा अनुवस्ते पिता पुत्रमिव प्रियमू ॥।
प्राणो ह सर्वस्येश्वरो यच्च प्राणिति यच्च न ॥ १० ॥
८ जिस प्रकार प्रिय पुत्रके साथ पिता. रहता है, उस प्रकार
सब प्रजाओके साथ प्राण रहता है । जो प्राणघारण करते हैं और
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