भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61 MB
कुल पष्ठ :
385
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४. )
के समय में बंगाल में अंग्रेजों का प्रभुव्व फैल चला था श्र इन्होंने इन
नवागंतुक व्यापारियों की सहायता फर बंगाल की नवाबी के सप्ट करने में
योग भी दिया था । उसी के फल स्वरूप इनकी बह दशा हुई थी जिसका
चरन आगे किया जायगा । उस समय इनका मान सी विशेष था, जिससे
इनके तीन पुत्रों को राजा शरीर एक को राय बहादुर की पद्वी प्राप्त हुई थी ।
संठ अनीनचंदू इतिहास असिद्ध पुरुप हो गए हैं और इनके पिता तथा
दादा का छुद भी बूत्तान्त नहीं मिलता, इसलिए उन्हीं का परिचय पहले
दिया जाता है |
मुराल-साम्राज्य का अवनति-काल औरंगजेब की सृत्यु से झारंभ होता
है श्रौर इसी काल में इस जजरित साम्राज्य की सीमा पर के
प्रान्तों के श्रष्यक्षयण धीरे घीरे स्वतंत्र होने लगे थे ।
श्रौरंगजेब के पोत्र अजीमुश्शान तथा प्रपौत्रफ़र खतिअर की सूबेदारी के
समय में मुशिंद कुलीखाँ बंगाल का दीवान था, जो फ्रु खुसियर के सम्राट
होने पर बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा का सूचेदार नियुक्त किया गया था ।
इसकी सूर्यु पर इसका दामाद झुजाउलूमुल्क तथा उसके 'छनंतर उसका पुत्र
सफ़राज़ खाँ क्रमशः प्रांताध्यक्ष (सूबेदार) नियत हुये। सन् १७४० ईं० में
'छलीवर्दी खाँ ने सफराज़ खाँ का युद्ध में मार कर बंगाल पर झधिकार कर
लिया । इस प्रकार देखा जाता है कि ये लोग नाम मात्र के मुग़ल-सम्नाद्
के झधघीनस्थ पहलाते थे पर वास्तव में स्वतंत्र थे । ्लीवर्दी का पुत्र न थे,
पर तीन कन्यायें थीं, जो इसके बड़े भाइ हाजी मुददम्मद के तीन पुत्रों का
व्याद्दी गई थीं । इन सभी कन्यायों के संतानें थी पर इनमें सबसे छोटी
सिफनिमिलिकपिलिकेकरफसिमिवा जमवीपििक उनका # ली. कर ८! 41 मे 11९. की कद सकते... धन
सठ शमीर चुद
युक्त है, नाम में लाया गया है और उच्चारण श्रमी सा करने तथा लिखते लिखते
चंद्रषिदु के लुप्त हो जाने से अमीचंद रह गया है । फ्रारसी में चन्दविंदु के न होने से
पूरे वर्ण ' नूँ * का मयोग होता है। निखिजनाथ राय की “सुशीदाबाद काहिनी,”
पुस्तक के ६७ प्र० पर भी अमीनचंद ही दिया है |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...