शुद्ध श्रावक धर्म प्रकाश | Shuddh Shrawak Dharm Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
550
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पाक्षिकाचार (३)
म्रथ--हिसा, भू ठ, चोरी, कुशल श्रौर परिग्रह श्रादि के त्याग रूप सम्यक् चारित्र
के दो भेद कहे गये है | १] सकल चारित्र २] श्रौर विकल चारित्र । सर्वे परिग्रह त्यागी
मुनियो के सकल चारित्र होता है आर परिग्रही श्रावको के विकल चारित्र । श्रब श्रावको
के विकल चारित्र को विस्तृत व्याख्या की जाती है ।
श्गावक का स्वरूप :-
'सम्पग्ददानसम्पन्नः, प्रत्यासन्नामृत' प्रभु. सस्याच्छावकधर्माहों, धर्म स त्रिविधो भवेत् । श।
अर्थ-उएजो सम्यग्दर्शन से युक्त हो श्रौर जिसकी ससार की स्थिति निकट हो वही
पुरुष श्रावक धर्म ग्रहण करने के योग्य होता है ।
श्रावक धर्स के तीन भेद :- न
'पक्षचर्पसि[घनज्च, चिधाधर्स विदुचु घा '' तद्योगाद् पाक्षिक: श्राद्धो, नेष्ठिकः साधकस्तथा। २।
अ्रथे--महर्पियों ने पक्ष, चर्या श्रौर साधन इन भेदो से धर्म के तीन भेद किये है
इन तीनो के घारण करने वाले क्रम से पाक्षिक, नेष्ठिक श्रोर श्रावक के भी तीन भेद हो जाते है.।
पक्ष और पाक्षिक का स्वरूप :-
,. “सैच्यादिभावनाबद्ध, त्रसप्रारिवधोज्कनम् ' हिस्यामहं न धर्मादी,पक्ष स्यादिति तेषु च। ३।
सम्पर्दृष्टि सातिचारमुलाएुब्रतपालक । श्रर्चादिनिरतस्त्वग्र, पद कांक्षीह पाक्षिक: ॥ ४01
श्रथे--झब विस्तार के साथ धर्मों का वर्णन किया जाता है । क्रम प्राप्त प्रथम
पाक्षिक श्रावक का स्वरूप कहते है । ससार के प्राणियों में मैत्री भाव रखना, वे सब सुखी
रहे ऐसा चित्तन करना, गणवानों को देखकर प्रमोद-ह्ष प्रकट करना श्रौर दु खी प्रारियों
को देखकर दया भाव रखना एवं धर्म से विपरीत चलने वालो मे माध्यस्थ्य भाव रखना,
रागद्ष न करना, उक्त चारो भावनाश्रो से चारित्र सयम धर्म की वृद्धि करने को, एव दो _
इन्द्रिय, ते इच्द्रिय, चतुरिन्द्रिय श्रौर पचेन्द्रिय रूप तरस जीवों की सकल्पी हिंसा के त्याग,
करने को, तथा धर्म श्रादि के निमित्त जीव हिसा न करने को पक्ष करते है । श्रर्थाु उक्त
प्रकार के सयम ध्में के पालन की प्रवृत्ति को पक्ष कहते है । जो सम्यग्दहष्टि हो श्रर्थात् सच्चे
देव, शास्त्र और गुरु का, ३ मुढता, ६ श्रनायतन, ८ मद श्रौर शकादि श्राठ दोषों से रहित,
तथा नि शड्धित झ्रादि भ्राठ श्रद्ध सहित, यथा श्रद्धा करने बाला हो तथा श्रतिचार सहित
/आ्ाठ मूल गुण एव पाच श्रणुन्रतों १ अ्रहिसाणुन्रत २ सत्याणुन्रत ३ अझचौर्याणुन्नत ४ ब्रह्म-
'चर्यारुन्रत और परिम्रह परिमाणारुब्रत का जो पालन करने वाला हो श्रौर देव शास्त्र
तथा गुरु की पुजन का झ्रचुरागी हो, तथा श्रागे प्रतिमा रूप सयम धर्म पालने का इच्छुक
हो, वह पाक्षिक श्रावक कहलाता है । क
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