विश्व के महान शिक्षाशास्त्री | Vishv Ke Mahan Shikshashastri

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Vishv Ke Mahan Shikshashastri by वैद्यनाथ प्रसाद वर्मा - Vaidyanath Prasad Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राककथ: गणतंत्र भारत की आाधारशिला को सुदृढ़ बनाने के लिए ऐसे कत्तेब्यनिष्ठ, भनुशासित एवं छितनशील नागरिकों की आवश्यकता है, जिनका नतिक चरित्र काचा हो, जिनमें उत्तरदायित्व वहन करने की शक्ति हो तथा जिनमें देश शरीर राष्ट्र के प्रति पूर्ण झास्या निद्धित हो । दूसरे शब्दों में, हम कहेंगे कि राष्ट्र के सामाजिक, आ्धिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक उन्नयन के लिए आाज हम भारतीयों को पात्मानु- शासित होकर, अपने भाचार और विचार में समन्वय करते हुए, अपने चरिश्न शोर व्यक्तित्व को विज्षेप रूप से प्रस्फुटित तथा उद्माहित करना है । इन उद्देश्यों की पति तभी होगी, जब देश की नई पीढ़ी -“विद्यार्थी- वर्ग को चंतुमुख विकास होगा । परंतु, इस चतुमुख विकास के लिए हमें श्रष्ठ कोटि की योजनावद्ध न्ादशं शिक्षा! की व्यवस्था (वोद्धिक प्रशिक्षण) करनी पड़ेगी । श्रेष्ठ कोटि की योजनावद्ध आदशं शिक्षा-व्यवस्था (शिक्षा-नीति एवं शिक्षण-प्रणाली) के लिए यट्ट जादश्यक है कि हम देश-विदेश के शिक्षामनीपियों के विचारों, नीतियों तथा सिद्धांतों को जानें घर उनका मनन करें । उनके जो विचार, नीति बोर सिद्धांत अपनी परिस्थिति के अचुकूल जँँचें, अपनावें झौर क्षपने अवरुद्ध माग॑ को क्रमशः प्रशस्त करें । कितु, इस स्थल पर हमें विशेप सतकें धर सुदृढ़ रहने को जरूरत है; क्यों कि, अपने शिक्षा-क्षेत्र में अभी संक्रमणकाल की स्थिति व्याप्त है । प्रयोग, परीक्षा घोर भनुभव के दिन सभी समाप्त नहीं हुए हैं । बत्त॑ंमान शिक्षा- व्यवत्या में भाधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं तथा शिक्षा और शिक्षण-संवंधी प्रचलित मान्यताएँ परीक्षण की कसौटी पर हैं । दक्षिक कार्यों में संलग्न सभी व्यक्तियों (चाहे वे शिक्षक हों या प्रशासक) के समक्ष विभिन्‍न प्रकार की समस्याएँ उपत्यित हैं । इनमें “शिक्षा-सस्याओं के आंतरिक गठन बौर प्रशासन की समस्या, परीक्षा के विधिवत्‌ संचालन की समस्या, राष्ट्रमापा बोर मातृभाषा हिंदी के शिक्षण की समस्या, बुनियादी तालीम के प्रति नास्या की समस्या और सावंभोमिक शिक्षा-प्रसार की समस्या आदि भाज सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ।




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