बिन्दुयोग : | Binduyog

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Binduyog by पं ज्वालाप्रसाद जी मिश्र - Pt. Jwalaprasad Jee Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषाठी का समेत: । (१३) भवति । तदा यक्ष्मरोगपित्तज्वरडद्यदाइ शिरोरोगजिद्दाजडभावा नश्यन्ति । भत्ति- तमपि विषन्न बाघते । यद्यत्र मनः स्थिर मवांत ॥ तालुके मध्यम चौंलठ दलवाला अमृतसे पूण एक कमलहे वह अधिक चोभासे युक्तदे अतिश्वेतदे उसके मध्यमें लालबण का टेकासं्क एक कर्णिकादे उसके मध्यमें भूमिद उसके मध्यमें प्रगट चन्द्रकला अम्ृतरूपद्े उसके ध्यान करनेसे इस प्ररूषकें समीप म्रत्यु नदी आती निरन्तर ध्यान करनेखसे अमृतधारा पड़तीद़े इससे वह सजीव रदतादे उस समय यफक्ष्मरोग दृदयदाह पित्तज्वर शिरो रोग तथा जिटद्ठा जडभावसे रहित दोतीहडे वह यदि विषभक्षण करले तोभी डसको बविषकी बाधा नद्दीं होती, यदि इसमें मन स्थिर हो जाय तो कथा कहना हे का इदानी त्रह्मरन्भ्रस्थानेडश्रमं शतद्लं चक वत्तेते । तस्य कमलजात्यघरणीपीठ इति संज्ञा । सिडपरुषस्य स्थानम्‌ । तन्मध्ये5- प्रिधरमाकाररेखाया दश्यादश्येका पुरुषस्य ' मूत्तिवत्तेते। तस्यानादिनातो5स्ति । तस्या




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