बृहदार राय को पनिषत | Brihadar Ray Ko Panishat

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Brihadar Ray Ko Panishat by रामस्वरूप शर्मा - Ramswarup Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिह... 2. करे... अवक...ह्रिलिन,.ति, हायर कि, पति... रे _ चहदारएयकॉपनिएत्‌। (४) | सन करनसनन अममसस्सम्म भ क शी कक ं कहा है, कि-सब ही कर्माका फल संसार है झधोत्‌ कोई सी कस करो उससे संसारक सन्पनपें झररय पड़ोरो । कर ह इस उध्यायक अम्वसय साफ प्रदष घास अश्प- * | विषयक उपासना इसलिये कही हँ, कि अश्वमेघं 1 अरब नामक अड् दी प्रधान है । इस यशके लामके साथ ! 4 'अश्च शब्द लगा हुआ है तथा अश्वद्या देवता प्रजापति | ं मे इसकारण अश्वमेथ यजञमें अश्च नामया अडकी प्रथा- | , नता है । इस घ्रातायकी पड़िली कथश्िडिका थह हो- 3* उप वा अश्वस्थ मेप्यस्प शिर । सूयश्च- जुवातः प्राण ब्यात्तमर्निंवेश्वानरसवत्सर झा- प्माःश्वस्य मेध्यम्य थी एष्टमन्तारिक्तमुदर प्रथिवी |. पाजस्य॑ दिशः . पा _ झवान्तरदिशः के है ०५. प्‌ “. पशव कतवोज्ज़ानि मासा्ाधगासाश् पवाण्य- हाराब्राणि प्रतिष्ठा नचत्रारयस्थीनि नभो मा- धसानि। उप्य८्पसिकताःसिन्घवांयुदा यकुच्च क़ोमानश्र पता झापघयद् वनस्पतयश्न लों मान्जुद्यन्पूवाघा 1नस्लाचन्जघनाधा याद न म्मते तडियोतत यद्चिधूचुत तत्स्तनयाति यन्मे हानि तद्व॒पाति वागिवास्य वा ॥ १ ॥ ; घर्चव श्रोर पवाप-( थे ) पखिद्ध ( उप! ) घस्पसुटस | ( मेश्यस्प ) यज्ञसम्घन्धी ( अश्दरप ; अरषका ( शिर: ) शिर है (सखयंः) सूप (चल्तुः) नेत्र (बात )चायु (प्राण )प्राणू ( बेश्चानर!, अग्नि) वेश्वामर नामवाला झग्नि(व्यासम्‌) ! ' खुला हुआ सुख ( सघत्सर: > घघ ( मंध्यस्य, छारवस्प) है करें १ सक प' पार से सकी गे चर फन चर ह कक की चाहा सनक का चक्कर हा जज है सब कफ हक डरा सदा फनबिकए काल, च्कदकि-डिलिडनी- डर्टी ए- मकर: दे: िडि:>न, : 2:24 कि




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