कवि शमशेर का काव्यदर्शन और कला - संधान | Kavi Shamasher Ka Kavyadarshan Aur Kala-sandhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निकालना चाहिए-इस हालत से तो इसको निकलना होगा।”'' उस समय बच्चन की भी पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। दोनो मे आपसी सहानुभूति स्वाभाविक थी। बच्चन ने अपने देहरादून प्रवास मे शमशेर को इस बात के लिए राजी किया कि वे इलाहाबाद जाकर एम0ए0 करे। बच्चन जी की प्रेरणा से शमशेर 1937 मे इलाहाबाद पहुँचे। वहा उनकी फीस का बच्चन और खाने का प्रबन्ध पन्‍्त जी करते थे। 1938 मे उन्होने एम0ए0 (अग्रेजी) प्रीवियस पास किया। किन्तु 1939 मे वे आर्थिक दबावो के चलते एम0ए0 फाइनल की परीक्षा मे न बैठ सके। एम0ए0 पूरा न करने का दूसरा कारण उन्होने बताया कि “मैने तय कर लिया था कि सरकारी नौकरी नही करूगा। उन दिनो राष्ट्रीय आन्दोलन चल रहा था। देश पराधीन था। मैने फैसला किया कि अग्रेजो की नौकरी नही करूगा। इसलिए ऐसी औपचारिक शिक्षा का महत्व मेरी नजरो मे नही था।'* 1939 मे ही चौधरी तारीफ सिह की मृत्यु हो गयी। धर्मवती जी की मृत्यु के पश्चात्‌ चौथे वर्ष ही शमशेर जी के लिए यह एक और आघात था। 28 वर्ष की उम्र मे यह तीसरी मृत्यु थी। शमशेर जी बिल्कुल अकेले हो गये। 1939 मे ही शमशेर जी ने “रूपाभ” मे कार्यालय सहायक के रूप मे काम किया। “रूपाभ” का प्रकाशन बद होने पर वे 1940 मे बनारस चले गये और वहा से प्रकाशित “कहानी” पत्रिका मे त्रिलोचन जी के साथ काम करने लगे। वहा वे त्रिलोचन जी के सहयोगी थे। त्रिलोचन जी उन दिनो की याद करते हुए कहते हैं “शमशेर और शिवदान सिंह चौहान दोनो एक साथ आये थे। मैं वही पहले से था, “कहानी” मे।”* शिवदान सिह चौहान उस समय सरस्वती प्रेस बनारस से प्रकाशित “हस ” पत्रिका का संपादन कर रहे थे। त्रिलोचन जी से शमझेर की (11)




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