जैन शास्त्रों की असंगत बातें | Jain Shastron Ki Asangat Batein

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Shastron Ki Asangat Batein by बच्छराज सिंधी - Bachchharaj Sindhi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बच्छराज सिंधी - Bachchharaj Sindhi

Add Infomation AboutBachchharaj Sindhi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जेन शास्त्रों की असगत बातें । धर (समतढ ) मानी गई है। जम्बूद़ीप ( जिसका विस्तृत वर्णन , जस्यूहीप-प्रह्न में है ) की ठम्बाई एक ठक्ष योजन और चौड़ाई एक लक्ष योजन बतछाई है थानी वह ४० कोटि माइढ की छम्बाई भर ४० कोटि माइल की चौड़ाई का एक समतछ भूभाग है जिसके वर्ग मीछ करें तो १६००००००००००००००००(एक शंख साठ पढ़ा) माइल द्ोती है। जस्यूद्दीप के इस समतठ भू-भाग को चारों तरफ से थाछी की तर गोल माना गया है. जिसकी परिधि के लिये लिखा गया है कि बह ३१६९९७ योजन ३ गाऊ १२८ धवुष्य १३३ अ्डुल १ यव १ लिख हूं वाठाम £ व्यवहारिये प्रमाणु हैं। गणना की सूदमता गौर करने काबिल है। यह भी लिखा है कि इस जम्बूदीप के यदि एक एक योजन के गोल खण्ड किये जायें तो १० अरब खण्ड दंगे और यदि एक एक योजन के सम 'चोरस खण्ड किये जायें तो ७६०४६४४१४० खण्ड होकर ३४१४ धनुष्य ६० अट्डुल क्षेत्र बाकी रद्द नाता है। अब हम जैन शाख्र कथित और वर्तमान दोनो के वर्ग माइछ पर दृष्टि डाठते है हो बहुत बड़ा अन्तर पाते दै। कहा १६ कोटि ७० लक्ष माइल वर्तमान के और कहा १ शंख ६० पद्म माइल जेनों के । पचीस जार साइल की परिधि के एक गोछ पिए्ड के वर्ग माइल कितने होंगे, यह एक छोटी कक्षा का विद्यार्थी भी बता देगा । हमारी ऐथ्वी पर आज हम एक सिरे से दूसरे सिरे तक जासानी से चारी तरफ विचरण कर रहे हैं। एक निश्चित स्थान से रवाना होकर एक ही दिशा मे चलते हुए ठीक उसी स्थान पर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now