आधुनिक यूरोप का इतिहास | Adhunik Uropa Ka Itihas

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Adhunik Uropa Ka Itihas by कैलाशचंद जैन - Kailashchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यूरोप में पुनर्जागरण का काल 11 किया था । “रानी एलिजाबेथ' ने भी धर्म सुधार के कार्यों को आगे बढाया था, उसने 1556 ई० में अपने राज्याभिषेक के बाद से ही धर्म सुधार के कार्यों को स्वय अपने हाथ मे लिया था भर समानता के नियम के आधार पर पृथक रूप से आर्ल चर्चें की भर्चना विधि की प्रतिष्ठित किया था। धामिक पुनर्जावरण का सबसे सहान कार्य प्रोटेस्टेन्ट धर्म के उदय के रूप में रहा था, इसने पोप व्यवस्था से सुधारों के कार्य को प्रेरणा दी थी। कल्विन उसका धर्म सुधार आन्दोलन चर्च मे सुधार और जागरण का कार्य एक अन्य महान व्यक्तित्व के स्वामी कैल्बिन द्वारा भी किये गए थे। 1 509 ई० में कैल्विन का जन्म फ्रास के नोयो नामक स्थान पर हुआ था । 1533 ई० में अपनी आत्मा की आवाज पर कंलिविन में एक नयी अनुभूति हुई थी । बहू तब से एक पवित्र, धर्म युक्त जीवन के मार्ग पर चल पडा था। उसके विचार प्रचलित कंथोलिक विचारधारा से पृथक ही विकसित होते चले गये थे और उसके प्रमाण अकाट्य भी थे । राजा फासिस प्रथम ने इस पर कठोर नियन्त्रण स्थापित करना चाहा था, तब यहू स्विट्जरलैण्ड चला गया था। अपनी मान्यताओं भौर धर्म में फेली हुई बुराइयों को दूर करने के लिए इसने एक बड़ी सुन्दर पुस्तक ईसाई धर्म के इन्स्टीट्मूट' लिखी थी। यहू पुस्तक सौ वर्ष से अधिक तक अपनी लोकप्रियता बनाये रही थी, इसके सस्करण धड़ाघड छपते ही बिक जाया करते थे। इसके माध्यम से ही कैल्विन ने धर्म को एक बड़ी सुन्यवस्थित विचारधारा के रूप मे सामान्य जनमानस से प्रतिष्ठित किया था। कैल्बिन का धर्म सुधार मे रचनात्मक कार्य इस रूप में रहा था कि उसने प्रोटेस्टेन्ड पाठशालाएं भी खोली थी भर उनमे यह स्वय अपने केल्विनवाद की तर्क पूर्ण ढंग से शिक्षा देता था । केल्विनवाद सामान्य आचरण सुधार पर भी बल देता था । इसलिए वहू मतो रजत के साधनों पर नियत्रण पर भी बल देता था, क्योकि इनसे व्यभिचार की बुराई उत्पन्न होने की स्थिति बनती चली जाती थी । ऑओटेस्टेंट धर्म सुधार आन्दोलन को कैल्विनवाद ने एक बडी सुव्यवस्था दी थी ! कल्विनं, लूथर की तुलना में चचें मे पूर्ण परिवतन करना चाहता था तथा बहू राज्य को भी चचें से पृथक रखना चाहता था । इस तरह कल्विन क! धर्म सुधार भान्दोलन बहुत ही क्रान्तिकारी आात्दोलन था, क्रान्ति के स्तर पर ही यह आन्दोलन फ्रास, रकाटलैण्ड, हालैंग्ड और स्विट्जरलैण्ड आदि देशों में फैला था । कल्विन धर्म क्षेत्र मे सुधार की चार प्रमुख देन रही थी । पहला उसका कार्य यह था कि उसने चर्च को सर्वेधानिक एवं लोक- ताबिक आधार पर बनाता चाहा था, वह समानता के आधार पर ध्र्माधंकारियों की नियुक्ति और स्थिति को रखना चाहता था । दूसरी उसको सुत्दर विचारधारा यहू थी कि वहूँ चारिनिक शुद्धता पर बल देते हुए अनुशासित और निपमित जीवन पालन करने का निर्देश देता था, यह मानवता के क्षेत्र मे बहुत बडी उपलब्धि थी । तीसरा व्य!वहारिक योगदान यह था कि उसने नैतिक नियमों का पालन न करने दालो और अनाचारी जीवन मे रहने दाल्लो के लिये दण्ड की व्यवस्था भी अपनायी यी । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये




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