धर्मो की एकता | Dhrmo Ki Ekta

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Dhrmo Ki Ekta by नन्ददुलारे वाजपेयी - Nand Dulare Bajpai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धरम की एकता कुल्द लोगों का यह भी विचार है कि पुराने ज़माने में जो कुछ काम धर्म किया करता था अथवा जिसके करने की उससे आशा की जाती थी ( और गए-बीते तरीके से जो कुछ उसने किया भी ) अब उसका समय वीत गया है । उसकी स्थानपूर्ति दर्शन, विज्ञान; कानून और कला द्वारा हाँ चुकी है | व तो नए-पुराने; सुधरे-वेसुघरे किसी भी धर्म की आवश्यकता नहीं रही । इसका उत्तर हम यह देंगे कि दर्शन, विज्ञान और कानून इन तीन कठघरों में मानवात्मा बंद नहीं रह सकती । बह इन तीनों में भी सास्य, साहचर्य और ऐक्य ढूँढना चाहती है । ऐक्य का बह साधन धर्म ही है जो इन तीनों, में मेल कराता है और मनुष्यों के हृदयों को एक सूत्र में चौँधता तथा संसार के मायाजाल से खींचकर उन्हें एक अखंड ईश्वर से ला जोड़ता है । घर्म चुनियादी सत्ता या नींव है । उसी के आधार पर दर्शन; विज्ञान, कला-कौशल आदि की इमारत खड़ी हो सकती है । छुछ व्यक्तियों, समाज के छुछ वर्गों अथवा राष्ट्र के कुछ दड़े हिस्सों में भी धर्म के प्रति अश्द्धा या विद्रोद का भाव फैल सकता है । यदि समाचारपत्रों की ख़बरें सच हैं तो हम कह सकते हैं कि रूस की शासनसत्ता ने उस देश की चौहद्दी से धर्म को निकाल चादर करने का भार अपने ऊपर ले लिया है । किस्तु इस समाचार का खंडन भी किया जाता है । हाल ही में यह संवाद छपा था कि रूसी जनता का बहुत बड़ा हिस्सा अपने धार्मिक स्थानों और गिरजाथरों से संपर्क बनाए हुए हैं और कठोर राजकीय दूंड के रहते भी उनसे नाता तोड़ने को तैयार नहीं है । अंतिम ख़बर यह है कि रूसी सरकार ने अब धार्मिक विषयों से अपने को तटस्थ




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