समाजशास्त्र का भारतीयकारण | Samajshastra Ka Bharatiyakaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
181
श्रेणी :
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No Information available about अशोक कुमार कौल -Ashok Kumar Kaul
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'समाजशास्त्र के सदर तथा इसला मारतायकरण नल
निरपेक्षता, सदर्भ-सस्कृति, विषयों का चयन आदि के रूप मे स्थापित्त हुए और
परिणामस्वरूप आधुनिक विषयों के श्रेणीक्रम मे समाजशास्त्र को प्रकृति-विज्ञान के
ऊपर रखा गया। स्पष्ट रूप से, प्रारम्भिक दौर मे समाजशास्त्र एक यूरोपीय था
पराइचात्य विषयोत्पाद के रूप में विश्व के समक्ष उभरा था जिसकी जड़े फ्रास और
जर्मनी में तो काफी गहरी और मजबूत थी लेकिन इग्लैण्ड मे इसका स्वरूप तैसा ही
रहा जैसा कि भारत में था।
सोदियत सघ के पतन के पश्चात् जब सम्पूर्ण दिश्व मे “सूचना-तकनीकी”
और “इलेक्ट्रॉनिक-क्रान्ति” ने न सिर्फ दुनिया के विभिन्न भागो को परस्पर निकट ला
दिया बल्कि इसके विभिन्न हिस्सों मे नई सोच और नए-विचारों के तीजारोपण भी कर
दिए और पुराने परम्परागत यूरोपीय सिद्धान्तो और उनके पैमानों को विस्थापित कर
दिया। इसके दूरगामी परिणाम अब हमे संस्थानों के सिमटते अस्तित्व के रूप मे देखने
को मिल रहे हैं। प्राथमिक समूह, सामाजिक-स्तरीकरण, सामाजिक नियन्त्रण,
समाजीकरण के नए अभिकरण और इनके माध्यम से निर्मित हो रहे समाज की एक
नई तस्वीर उभर रही है जिसमे इतिहास द्वारा अब तक उपेक्षित या प्राय विस्मृत कर
दिए गए लोगो और वास्तविकताओ की परछाइयो के कलेवर भी शामिल है। इस सपूर्ण
प्रक्रिया मे वो प्रश्न एक बार फिर महत्वपूर्ण रूप से प्रस्तुत हो रहे हैं जिनके बारे मे यह
माना गया था कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया उनकी समाप्त कर देगी, लेकिन ऐसा हो
नहीं पाया। आज “स्व” और “अन्य” (*561” घण्वे “0” का वर्गीकरण और
विश्लेषण मए प्रारूप में नई शैली में हो रहा है। ए० गिड्डेन्स के अनुसार “नया युग
अनिश्चितताओ का युग है और इसमे इतिहास ने अपनी दिशा खोई है।” इस
परिप्रेक्ष्य मे भारतीय परिवेश मे समाजशास्त्र मे संस्कृति के दायरे मे सस्कृति की
पारम्परिक शक्तियों और आधुनिक पूँजीवाद की पारस्परिक-टककराहट के
परिणामस्वरूप नए 'बेन्ह-बिन्दु' निर्मित हो रहे हैं। भारतीय विचारको के अनुसार एक
नया समाज बमाने का प्रारूप बनाने की आदश्यकता हैं, जिसमे अपनी सस्कृति ऑर
इतिहास के उन तत्वों को उभारने और दिश्लेषित करने के मुद्दे शामिल होने चाहिए,
जिनकी अब तक प्राय उपेक्षा होती रही है। हालौंकि प्रारम्भिक भारतीय समाजशास्त्री
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