वीर और विदुषी स्त्रियाँ [भाग २] | Veer Aur Vidushi Striyan [Part 2]

Veer Aur Vidushi Striyan [Part 2] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१४ इसका बाप बड़ा सिपाही: था परन्तु अब हो बहुत दिनों से उसने बन्दूक को हाथ तक नही ठगाया वह जन्तुओं का शाष्द सुनकर कांप उठती हैं वहें कीड़े मकोड़ों की जान ठेना भी हृत्या समझती है 1 . परन्तु क्या अवसर पड़ने पर भी दह आगा पीछा कर सकेगी दलबम्भनपिंह दस कर कहने लगा पाह तुमने अपसर की एक ही कही भय के समय इस की घिष्पी बंध जाती है । इतनी ग्जावती है कि किसी स्त्री से प्रायः बात चीत नहीं करती परन्तु कुछ परवाह नहीं में प्रत्येक समय उस के साथ रहकर उसकी आशा पूर्ण करता हूं। साथी ने कहा “'ठुम नहीं जानते ऐसे स्वभाव वाठे अवसर पढ़ने पर बड़ा काम करते हैं हम तुम से नहीं हो! सर्क।




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