भ्रमरगीत सार समीक्षा एवं व्याख्या | Bhramargeet Sar Samiksha Evm Vyakhya

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Bhramargeet Sar Samiksha Evm Vyakhya by प्रो॰ पुष्प पाल सिंह - Prof. Pushp Pal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२१०८ की बी ऑ्रमरगीत सार समीक्षा एवं व्याख्या हे सखि यह तो कोई कुष्ण जैसी ही आकृति का है वह आ भी मथुरा से ट्धर को ही रहा है, तू तनिक ध्यान पुर्वक अपने नेत्रो से देख । उसके माथे पर मुकुट, कानों में कमनीय कण्डल एवं दरीर पर पीला वस्त्र सुद्नोभित है । वह रथ पर बैठकर भ्रपने सारथि से ब्रज की ओर हाथ उठाकर, इंगित करता हुमा कुछ कह रहा है । तात्पर्य यह है कि यह श्रवद्य ही मथुरा से माने वाले ब्रज से सम्बद्ध श्री कृष्ण है । मै बिल्कूल ठीक-ठीक तो नहीं कह सकती किन्तु कूछ-कुछ पहुचानती हूँ, लगता है कि इस व्यक्ति को देखे हुए चार युग, म्र्थात्‌ दीचंसमय हो गया है। व्यग्य यह है कि कष्ण तुम चार-युगों के समान लम्बी श्रवरधि के परचात्‌ यहाँ आ रहे हो फिर भी हम तुम्हें पहचा- नती तो है । सुरदास जी गोपियों की उस श्रवस्था की उपमा देते हुए कहते है कि वे अपने प्रियतम कृष्ण से बिछूडफर वँसी ही हो रही थी जैसे बिना जल के मछली विकल होती है । विशेष--१ शझ्लकार--अनुप्रास, घर्मलुग्तोपमा (जहाँ उपमेय एवं उपमान का साधारण-धर्म--यहा प्रियतम से बिछुइने पर विकलता - बताया नहीं जाता) तथा भ्रम अलकार है । पद १२ उद्धव के ब्रज आगमन पर जब गोपियों ने नद द्वार पर रथ खडा देखा तो बे सोचने लगी कि पुन श्रक्कर आ गये है किन्तु फिर उनका श्रम दूर होता है । उनके इसी सनोभाव का चित्रण करता हुश्रा कवि कहता है गोपियों ने जब नन्द द्वार पर खडा हुआ रथ देखा तो वे परस्पर कहने लगी कि हे सखी प्रतीत होता है कि श्रक्नूर पुन आ गये हे । ऐसा सोचकर उनके हृदय मे अमगल की झ्ाशका होने लगी (क्योकि पहले भी कृष्ण को ले जाकर इसने श्रमंगल किया है) हमारे प्राणो को तो थे पहले ही श्री कष्ण के रूप ले जा चुके है पता नहीं श्रब क्या करते म्राये है । दूसरी गोपी कहती है कि हे सखि ! मेरा अनुमान है कि श्रब हम पर कुछ अनुकम्पा करने आया हे । उसका बिचार था कि सम्भवत यह श्री कृष्ण को लौटाने आये हो । इसी वार्ता के बीच उद्धव जी ने आकर दर्शन दिये । गोपियों ने जब उन्हे कृष्ण के मित्र के रूप में पहचाना तो उनका तनमन




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