जैनवार्ना | Jainavarna
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
486
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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लस नाशक्ष पतंग। सरखा रसे पूरित श्रंग अंग ॥९॥ जय श्री
स्वर सन्द शकलंक रूप । पद सेव करत नित शमर भप
सय पंच शरक्ष जीते मंहान । तप तपत देह कंचन समान
॥२॥ जय निश्चय सप्त तत्वाथे म्यास । तप रसा तलनी
| सन् में प्रकाश ॥ जय विषय रोध सम्बोध साल । पर पर
। खति नाशन श्रचल ध्यान ॥ ३ ॥ जय जयहि सर्वे हुल्दूर
दुयाल । लखि इन्द्र जासवत जगत जाल ॥ जय उष्णाहा-
री रमण रास । सिज परणत सें यायो शाराम ॥४॥ जय
शालन्द घर दात्याण रूप । कल्याण करत सबकी झनुप
जघ मद नाशन अयदान देव। निरसद् विचरत शब करत
सेव ॥ ५) जय जय विनय लालस शमान । सब शूननु सि-
मर सानत ससास ॥ जय कृशित काय तप के प्रभाव । छ-
एवि छठा चठाति शानन्द् दाय ग्रह जय सिन्न सकल जय
के सुसित्र । न थिसत अधस कोने पदिन्र ॥ जय चन्द्र
बदन राजीव नयन। कबहू बिकाथा बोसत न चयन ॥9॥
जय साती मुनिवर एक संग । लित गंगण गसब करते झ-
| संग ॥ जय आये सथरापर समकार । तहां मरी रोग का
अति प्रचार ॥ प॥। जप जय दिस चरलों के प्रसाद । सब
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