जैनवार्ना | Jainavarna

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Jainavarna by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[२ ] लस नाशक्ष पतंग। सरखा रसे पूरित श्रंग अंग ॥९॥ जय श्री स्वर सन्द शकलंक रूप । पद सेव करत नित शमर भप सय पंच शरक्ष जीते मंहान । तप तपत देह कंचन समान ॥२॥ जय निश्चय सप्त तत्वाथे म्यास । तप रसा तलनी | सन्‌ में प्रकाश ॥ जय विषय रोध सम्बोध साल । पर पर । खति नाशन श्रचल ध्यान ॥ ३ ॥ जय जयहि सर्वे हुल्दूर दुयाल । लखि इन्द्र जासवत जगत जाल ॥ जय उष्णाहा- री रमण रास । सिज परणत सें यायो शाराम ॥४॥ जय शालन्द घर दात्याण रूप । कल्याण करत सबकी झनुप जघ मद नाशन अयदान देव। निरसद्‌ विचरत शब करत सेव ॥ ५) जय जय विनय लालस शमान । सब शूननु सि- मर सानत ससास ॥ जय कृशित काय तप के प्रभाव । छ- एवि छठा चठाति शानन्द्‌ दाय ग्रह जय सिन्न सकल जय के सुसित्र । न थिसत अधस कोने पदिन्र ॥ जय चन्द्र बदन राजीव नयन। कबहू बिकाथा बोसत न चयन ॥9॥ जय साती मुनिवर एक संग । लित गंगण गसब करते झ- | संग ॥ जय आये सथरापर समकार । तहां मरी रोग का अति प्रचार ॥ प॥। जप जय दिस चरलों के प्रसाद । सब यययययरसकरवलयककलयवैसलिललललललकलकललकालफलयालॉनिलकलकिकगनाीीी ं




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