इस्तवान तरंगिनि भाग - २ | Istavan Tarngini Volume-2

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Book Image : इस्तवान तरंगिनि भाग - २  - Istavan Tarngini Volume-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ च ५. जी, ॥ अथ कुब्दाछ़ी ॥ प्रतप .भाण समान हमांन जो जगमें निज घरम दिपाबे ॥ जो जगमें जिन धर्म दिपावे वो जगमें जगनाथ कहांवे॥ टेर ॥ जिन माधित आगम अनुसार जिनवर घमे करे परचार॥। घारे शिर ज़िन आणामार साही जन जैनी कहलाबि ॥ प्र०॥ १५ पर मावना अंग अब .धार॥ तन मन घन व्यय करे अपार ॥ आ- गम श्रथतनों मडार करके बिधाठय खुछव-- बे ॥प्र०१२)। उप्रदेशक जन कर तय्यार।भेजे देश:.विदेश मज्ञायाजहें पे नहीं साछु पयसार तह पे दया घरम दरशावि ॥ प्र; ॥.३॥ दिक्षा उेबेंजोनरनारताकोदेंवेविविवसहारापरमवकी ठेखरचीकारताकीदर्ददेशकारतिछावे॥प्रु०॥




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