इस्तवान तरंगिनि भाग - २ | Istavan Tarngini Volume-2
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
60
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ च ५. जी,
॥ अथ कुब्दाछ़ी ॥
प्रतप .भाण समान हमांन जो जगमें निज
घरम दिपाबे ॥ जो जगमें जिन धर्म दिपावे वो
जगमें जगनाथ कहांवे॥ टेर ॥ जिन माधित
आगम अनुसार जिनवर घमे करे परचार॥।
घारे शिर ज़िन आणामार साही जन जैनी
कहलाबि ॥ प्र०॥ १५ पर मावना अंग अब
.धार॥ तन मन घन व्यय करे अपार ॥ आ-
गम श्रथतनों मडार करके बिधाठय खुछव--
बे ॥प्र०१२)। उप्रदेशक जन कर तय्यार।भेजे
देश:.विदेश मज्ञायाजहें पे नहीं साछु पयसार
तह पे दया घरम दरशावि ॥ प्र; ॥.३॥ दिक्षा
उेबेंजोनरनारताकोदेंवेविविवसहारापरमवकी
ठेखरचीकारताकीदर्ददेशकारतिछावे॥प्रु०॥
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