गुप्त साम्राज्य का इतिहास खंड 1 | Gupt samrajya Ka Itihas Khand 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वासुदेव उपाध्याय - Vasudev Upadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुप्त इतिहास वी सामग्री डे
रिव उमत्ति तथा शूद्धि वा शाप दस मिलता दे। गुप्त काल में सिफरे की अविक्ता
के कारण यह विदित हैता है कि उस समय में व्यापार की यडी डद्धि थी। सेने दे
सिर्फ का यहुलता तथा चोंदी के सिक्के! की श्रल्पसरयता से यह प्रकट दाता है कि शुप्ते!
के समय में सोना सरलना से प्रा्य था |. गुप्तकालीन मुद्राभा पर उपाशा के सिंकरे! की
छाप पड़ी मालूम हवाती है । श्रतप्व गुप्ती तया घुपाणों के समीपवर्ती देने की सूचना
इनये सिक्का थी समता से मिलती है । उत्काण लेखे दी तरद मुद्रा के प्राप्तिस्थान
भी व जशा मे गुप्त साम्राय्य की सोमा निर्धारित करते हैं। इन सिक्के की परीछा से
गुप्त काल वी प्रिशिष्ट ऐतिहासिक घटनाओं वी सूचना भी इस निश्चित रूप से मिलती
है। गुप्त सम्नाद समुद्रगुप्त तथा छुमारगुप्त प्रथम के “श्रश्वसेघ सिक्ते” इसके द्वारा थिये
गये “श्रश्चमेघर यन के स्मारक हैं। गुप्तो के चॉदी के सिक्के शक क्षतपों का शैली थे
मिलते हूं जिनसे यदद अनुमान फिया जाता ई फि शुप्तो ने मालया तथा सुनसत से इन
पिधमी शासक के सार भगाया तथा इन देशा पर श्रपनी फ़िंजय वैजयस्ती फदसई ।
इन्द कारणों से गुप्त-साम्नाज्य के इ्रतिदास पिमाण मे मुद्रोओं की उपयेगिता का श्रनुमान
किया जा सकता दे।
(३) शिवप शाखर
विसा जाति पी साश्कृंतिव उनति का श्रनुमान उसकी कला थे द्ध्ययन से सहज
म क्या जा सकता दे। गुप्त काल से शिल्प का घिकास अधिक परिमाण में पाया जाता
है फिससें उस फाल के 'सण'-युग' दाने में तनिक भी सदेदद दीं रहता | शुप्तवालौन
प्रस्तर कला उजति की चरम सीमा के पहुँच गई थी। इतनी सु दर और भव्य मूर्तियाँ
इस समय में चर्नी कि उपयी समता श्न्प्र नहीं पाइ जाती ।. शिल्प के द्वारा शुप्त+
फालान घामिक अपस्था का अच्छा शान दाता हे। गुप्त राजा व्णयंघमायलम्वी ये
श्रतएव स्पभायत उन्देते दियू मूतिये ये बनाने में प्ोत्साइन दिया , परन्तु पाद्ध तथा
सौंप धम या भी स्वधा श्रमाय न था | इस! समय की अतीय मध्य युप्त शैली थी बुद
बी मूर्ति मिती है । लेगात्काण' श्रन्य पाद्ध तथा सैप मृतियाँ मिला दें जिसे पाद्ध जार
न धरम के प्रयार ऋी पुष्टि दाती है | मृत्तियें के श्रप्ययन से यह प्रकट हे।ता हे कि गुप्त
फाल नें पू्यं च्ाहाणु घम का इतना प्रचार नहीं था परन्तु शुष्त राताश्यां थे बारण हो
ब्राह्मणधर्म क। उजति सार ग्रद्धि हुई |. मूर्तियों थे सद्दारे शुप्तफालीन म्रस्तर कला के
विभिन्न पेपर की थिशेपता ॥ पर प्रकाश पढ़ता है ।. शिखर शैली थे सदिरों का प्रचुर
प्रचार इसी काल गे हुआ ।. इस प्रदार शिल्प-शाख्र थी सददायता से शुप्ता की सश्कति,
समकालीन धामिक श्यस्था नथा पला काशल ये विशद फिकास का पशा-्त परिचय
मिलता दे | 1
( ४ ) साहित्य
रु १५ सर्द खादिस्प गे मुप्त इतिडास पे निमारय मे पयाप्त र्दोयपा कि पी है य
पेनिदाण्फि सामप्रिगें ये; इसका स्थाप बस सहस्य का पई है । एक सम्प्य ध्त एप
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