अमर - लाभ | Amar - Labh
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज - Acharya Shri Hastimalji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्थानकवासी परम्परा का भव्य-मवन जो श्राज अपने गौरवमय इतिहास के
लिये देवीप्यमान है-उसके श्राधार-शुत तत्वों पर जब हमारी हष्टि जाती है तो
सहसा हमारा हृदय दो महान् विभ्रुतियो के दिव्य-दर्शन से पुलकित हो उठता है ।
लोकाशाहे की क्रात्तिकारी विचार धारा को तीब्रगति' से प्रवाहित करने वाले
झाचार्य श्री बर्मदास जी, श्री लवजी ऋषि एवं श्री धर्मसिह जी म० के नाम सदा
अमर रहेंगे । ये तीनो ही महान विभ्रूतियाँ उच्चकोटि के क्रिया उद्घारक तथा
श्रात्मार्थी साधक थे जिन्होंने श्रठारहवी शताब्दी के उत्तराद्ध में धम जागृति की मन्द
पडी ज्योति को पुन प्रज्वलित किया ।
श्री घन्नाजी महाराज पुज्य श्री घमदासे जी महाराज के पट शिष्यों में थे । श्राप
के स्वगंवास के पश्चात् पूज्य भुषर जी मे सा ने भ्राचायं पद का भार वहन किया ।
स्वत १८०४ में झाप स्वर्गवासी हुये 7 श्रापके चार बडे शिप्य हुये जिनमें सब श्री
पूज्य रघुनाथजी मे सा श्री जैतसीजी म, सा ३ पृज्य श्री जयमल्लजी म सा एवं
४ पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी मे सा । स्व श्री अमरचन्दजी तथा श्रीताभवन्द्रजी मे सा
पूज्य कुशलजी म सा तथा श्री रतनचन्दजी म सा की परम्परा भ्ौर समुदाय में ये ।
श्राप परम तपस्वी, प्रात स्मरणीय श्री १००८ श्री हस्तीमतजी म सा के
गुरु भाई थे । एक लम्वी श्रवधि से यह श्रावाक्षा अवल हो रही थी दि दोनो सनतों
का जीवन वृत प्रकाशित किया जाये । सबन् र०३० के चातुर्माव से तो यह विचार
प्राय बनसा गया था । बडी प्रसनता की वात है वि प्रवाशन समिति उस गुरुत्तर
भार को वहन कर यह जीवन वृत्त पाठका के कोमर करो में प्रस्तुत बर रही है ।
स्व श्री प्रमरचन्दजी मे सा जैसे तपोनिष्ठ चिन्तक' श्रोर सेवा भागी श्रात्मार्थी
सन्त के सम्बन्ध में तो क्या कहा जाय ? उन्हीं की श्रहस्म घ्रेरगा में श्री श्रमर जैन
झेडिकल रिलोफ सोसाइटी चिम्त्या मे क्षेत्र मे जयपुर के जागो जोगा थी ब्रसि य्प
सेवा कर रही है ।
मेन प्ाग्रह स्वीरार वर श्री ही मुनि जी से सा वे सो चौथमलजी मे सा
ने इन दोनों सन्तों के जीवन चरिय तयार दिये 1 एस काय में प्रेरगग दर का स्रेय
न भी अ है
श्री श्रीचन्दजी महारात को ही है जिनरीं प्रेरणा ने मुझे मागददसन रिया है इस
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