राजराजेश्वरी विक्टोरिया | Rajrajeshwari Victoria

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Rajrajeshwari Victoria by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चौंधी अध्याथ । ४. कुत्ता सचारानीका बड़ा प्यारा था।. वद्च व्यपने कुसका गला पकड़ लेती थीं ; कुत्तेकी शरीरकों ठेख देकर वेठती थीं , कभी कभी उसे प्यार करती थीं ;--आछारवी समय कुत्तकों बिना दिये खाती न्थीं। वातन साननेपर वुत्तेकों सारती थीं । कभी कभी छोटे कुत्त को लड़का कक्षके गोदमें लेती थे 1 बिकटोरिया लड़कपनमें धनुर्वाण 'वलानेसें वड़ी निपुण छुई।. जब कमानपर पनच चफ़ाकर कुछ वाई' और छिलके राचपुवी सौर बर- साती थीं, तब मनुष्य कछ्ता था, यच् वस्तु सर्भग्रलोककी नद्दों-- विक्टोरिया स्वगंकी देवी है । बिकटोरिवाकों घोड़पर चफ़ना खुब साता था । साके निनेघ लारनेपर भी वच्च सुबती न थी, कभी कभी रो भी देती थीं । घोड़पर 'चदनेका उनको इतना शौक था । जिन घोड़े घोड़िवोंपर वह पढ़ती थीं, उनकी वचछ् पुत्र वन्याकी साँति देखती थीं। उसके श्रीरपर छाथ डालती थीं ; गला साड़ देती थीं ; पूरा रातव खा चुका कि नद्ीं, इसे देखती थीं ; कभी कभी सुक्चसे सुक् लगाती थीं । बालिका विक्टोरिया सिठवोलनो य्यौर सच्ची थीं। रक बार सवेरे राजकुमारी विक्टोरियाने लड़कपनके खभावसे पढ़नेमें सन न लगाकर शिक्षथित्री लेजेनकी न वात सुनी । कहा, मैं न पढूंगी ।' विक्टोरिया, पढ़ती नहीं व्यौर उस्तानीसे सागड़ती है ;--यक्. बात माके कानमें पड़ो । उन्होंने कंमरेके भीतरसे व्याकर पूछा, “बा छुव्या ? शिच- थित्नीने कछ्ा, “रेसा तो झुछ छुआ नहों,-राजकामारोंने रक बार मेरी नात नद्ीं सुनी । रानपुत्नीवे तुरन्त सेजेनका छाथ पकड़कर




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