भारतीय सहकारिता का इतिहास | Bharatiy Sahakarita Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारत में सहकारिता श्५्
नहीं था । परन्तु इनकी आवश्यकता इतनी अधिक थी कि प्रावधान न होने
पर भी केंद्रीय सभाएं बन गई और इनकी कम्पनी अधिनियम के अधीन
रजिस्ट्री कराई गई । साथ ही यह भी अनुभव किया गया कि कृषि तथा
उद्योग-धंधों की उन्नति तथा उनको बिक्री संबंधी सुविधाएं प्राप्त कराने
के लिए सहकारिता का प्रयोग हो सकता है ।
परन्तु सन् १९०४ के अधिन्नियम के अधीन ऋण तथा साख-सभाओं
के अतिरिक्त किसी और किस्म की सभाओं की रजिस्ट्री कराने का कोई
प्रावधान न था । उपभोक्ता ( (00715पाएए८7 ) क्षेत्र में सहकारिता का
प्रवेश रुका रहा । इस काल में रजिस्ट्रारों के कई सम्मेलन हुए ।
उन्होंने भी इन दोषों को देखकर प्रांतीय सरकारों का ध्यान आकर्षित किया । :
फलस्वरूप भारत सरकार ने एक नया अधिनियम बनाने की आवशइ्य-
कता अनुभव की ।
सन् १९१२ का सहकारो-अधिनियम
सन् १९१२ में नैया सहकारी कानून बना । यह नया कानून उस समय
से लेकर अब तक संशोधित नहीं हुआ । हां, बंबई, मद्रास तथा बंगाल की
प्रांतीय सरकारों ने सहकारिता विषय के प्रांतीय सूची में आने पर इसमें
कुछ परिवर्तन अवश्य किये; परन्तु बहुत से राज्यों में अभी तक यह
एक्ट पुराने रूप में ही चालू है, हालांकि १९४६ की सरय्या-समिति ने
इसमें संदोधन की सिफारिदशें की थीं । अतः आवश्यक हैं कि इस अधिनियम
के प्रावधानों पर कुछ अधिक व्यौरे से विचार कर लिप्रा जाय ।
सन् १९१२ के सहकारी-अधिनियम के विशेष परिचायक प्रावधान
इस प्रकार हैं:--
१. केवल ऋण तथा साख-संबंधी सहकारी सभाओं के रजिस्ट्री
किये जानें के १९०४ के प्रावधान के स्थान पर यह प्रावधान रखा गया कि
वह सब सहकारी सभाएं रजिस्ट्री की जा सकेंगी, जिनका उद्देश्य सह-
कारिता के सिद्धांतों पर अपनें सदस्यों के आर्थिक हितों का विकास हो
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