क्रान्ता द्रष्टा | Kranta Drashtha

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Kranta Drashtha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपूर्व आत्सबली हु भी हीरालाल नांदेचा पूज्य झ्राचार्यश्री जवाहरलाल जी महाराज साहव नें श्रपने उपदेशो द्वारा जनियो को इस वात का भान कराया कि जन कायर नहीं होते है, वटिक झ्रात्मवली होते हैं । जव पृज्यश्नी को वेदनीय कर्म ने सताया तब उन्होने श्रात्मवल का प्रत्यक्ष भान कराया । जलगाव मे शक्कर की वीमारी से हाथ मे फोडा छुआ था, तब वर्गर शीशी सु घे हाथ का ऑपरेशन कराया । इसी प्रकार भीनासर में गदन पर भयानक फोड़ा हुआ तो वरगर वेदना वेदते सुखे-सुखे उसका ड्रे सिंग कराया । ऐसे श्रात्मवली को धन्य है । इसी प्रकार पुज्यश्री चारित्र के पक्षपाती थे । उन्हे चेलों का सोह नहीं था । सैद्धान्तिक प्ररुपणा में विशेप श्रद्धा रखते ये श्रौर उसका यथार्थ रूप से श्रथ भिन्न-भिन्न करके समभकाते थे । उनके विचारों को श्राज भी महत्त्व दिया जाता है । की कक दूसरे के अधिकार को श्रपहरण करके यश प्राप्त करने की इच्छा मत करो, जिसका अधिकार हो उसे वह सौंप कर यश के भागी वनों ॥ ( श्राचायें श्री जवाहरलाल जी स. ) रू६




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