स्वामी रामतीर्थ | swami raamtirth

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swami raamtirth  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपासना श्डू व्यदद्वार और अभिमान बढ लॉय । जहाँ पापी फलता-फूलता दाते दो, चद्दों सुखभोग करी कारण दूँढो तो उस पुरुष का चित्त ब्यात्माकार शरीर एगान्त रद था, जो तुमने देखा नहीं, ीर उसके पाप कर्म का परिणाम नोजो तो महा वश होगा, जो व्पभी तुमने देखा नददीं । तुम पर किसी ने व्यय अत्याचार छिया दै, तो श्रहक्र- रद्वित होकर, पक्षपात छोड़कर तुम अपना श्गला पिछला दिसाव विचारों । तुमको चाघुक केवल इसलिए लगा कि तुमने कद्दीं श्रयुक्त रजोगुण में दिल दे दिया था, श्रात्म-सम्सुख नहीं रदे थे, राम के छ़ानून को तोइ येठे थे । मन के न्रष्णकार न रहने से यह सजा मिली, अब उस श्रनथकारी चेरी से जो चदला लेने और लड़ने लगे हो, जरा दोश में श्या्यो कि अपनी पद्दली भूल को श्ीर भी चीशुना पॉचशुना करके बढ़ा रहे हो और प्रतिक्रिया से उस श्पराधीरूप जगन के पदाथ को सत्य घना रहे हो और न्रप्न को मिध्या । वद्यो ! थाद रक्‍सो, ऐटो तो सही रद फे घ्योटे की तरह, मुक्फे न साश्रो और चार बार पटके न लाध्ोरों तो फहना | प्रायः लोग श्रीरों के पसूर पर जोर देते हैं '्रीर 'प्रपने तड चेर सूर ठद्दराते इ । हो ग्रत्यगात्मारूप जो तुम हो चिलइुल मिष्कल दी हो । पर घपते तट शुद्ध 'भात्मदेव ठाने भी रहो, चुपड़ी पीर दो दो ण्यॉफर बने ? श्रपने 'यापरों यारीौर सन युद्धि से तादात्म्य ररना, मोर घन पर दिस्दाना निप्पाप, चदी तो घोर पाप है, चाफो सच पापों बी लड़ । घाव देग्यो सा यद्ररप जानने तुमजो सत्य रयरप 'ात्मा से विमुयस दोने पर रुनाएं थिना फभी सदीं दोएता. वह ईश्वर उस सत्यादारी हुन्दारे परी जी चौरी क्यो मर गया टै ? कोई उस च्यग्वक की मेंग्वो में नोने




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