भक्त - चरितावली भाग - 1 | Bhakt Charitawali Bhag - 1

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Bhakt Charitawali Bhag - 1 by लल्लीप्रसाद पाण्डेय - Lalli Prasad Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ मक्त-चरिवादली | ब्रथस 1 हिन्दुओं के सन्दिरों में फोड़ डालते हैं; सागवत दि धघर्सग्रन्थां को ज़दरदस्ती छीनकर थ्ाग सें जला डाल तल ही से श्र पार सक्त राधघुधों का पागल बताधर उनका उपहास करते दथा उनके साथ चुरा व्यरहार बरतें हैं । ऐसे दुःससय से थडि स्वयं सवा छवतार ने लेंगे दा देश की सद्ति का कई उपाय सहीं है ।”” हुरिदास की यह बात सुनकर अद्भुत ने छट्टा-+छुरिदास, सगवान इसका उपाय करेगे, तुम चिन्ता सह करा !?*. झट्ेत पे. मैइ से यह झमयबाणी सुनकर दुरि- देनां हाथ उठाकर श्रानन्द से दया करने लगे । झ्र्ठेत ब्ाचार्य के! दृढ़ विश्वास हा गया था कि नवद्वोप में गोरचन्द्र जन्स हंकर सक्ति की बाढ़ दें नर-नारियों को पाधित करग दरार उनका कामना पूण हागी । इसके लिए वे उस #५ ष्न्न्द ढक, ९, कि था कि प्म् पुण्यसूसि नवद्वीप थें रहने के लिए गये ।. उस समय भ्द्वत ग्राचाये भलेक विषयों सें व्युत्पन्न हो चुके थे ! ज्ञान-शिक्षा देना उस समय ब्राह्मण-पण्डितों के जीवन का एक प्रघान व्रत था | झ्रट्टवाचाय दो दाल-रोटी की चिन्ता न थी । उन्होंने ज्ञान-शिक्षा देने के लिए नवद्गवीप में चतुष्पाठी स्थापन करके विद्या-दाल करना झारम्भ कर दिया ! वे छात्रों को! श्रीमद्धाग- वत, गीता, वेद घोर रखतिशाख की शिक्षा देने लगे ! दिन को ते! वे पढ़ाने-लिखाने में निरत रहते थ्रार सायइाल की हरि- दास के साथ हरि-युएनकथन धार इरिसड्ीतन करते थे |




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