श्रीलिंगपुराण भाषा | Shrilingapuran Bhasha
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
638
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर्घाध । श्र
तंन्सात्र. और शब्द तन्मात्रंसे आकाश उत्पन्न हुआ और
'ब्याकीश ने शब्द को आवरण: किया इसीसे आकाश
शब्द को कारण कहायों आकाशसे स्पर्श तन्मात्र ओर
'स्पंशे तनमात्र से वांय उत्पन्न भया -वायसे रूप॑ तन्मात्र
और रूप तन्मात्र से अण्नि, अग्निसे रस तन्मात्र ओर
रस तन्मात्रसे; जल, 'जलंसे गन्ध तन्मात्र चर गन्घ
तन्सातसे भमि उत्पन्न मई आकाशने, स्पशंसात्र को
'्ॉवरण किया वाय ने रूंपमात्रें को' अग्नि ने रसंमात्रं
को 'जल ने गन्धसात्र को. आवरण किंधा.एथ्वी में
. पांच गण हैं जल में चार अखि में तीन बाय में.दो
“गण चर आकाश में एक गणहे । इस ब्रकार .
' तन्मात्रा, आर पंच मंहासतां. की उत्पत्ति परस्पर
: जांननी: चाहिये । सात्विक राजस तांमस सगकी म्रद्ति:
'युगपंत्त अत एककांल मेंही होती हे परंत थीं अंहं
कार, सेहझे. सबंकी सगे अर्थात, उप्पत्ति लिखी है और
: इस जीव की शब्दादिकों कीं बोध होनेके अंथ परमेश्वर
नें पांच, ज्ञानिन्दिय और पांच कर्सेन्द्रियं रचें ओर संघ
' उमंयात्मकं “अधात-ज्ञानेन्दिंय और कर्ेन्द्रियं दोनोंकें
'.गरणसे रचा। महतिस्व जम फिशने जल बुदुचुद की सांतिं
: इसे चंड को उत्पन्न कियों नहा विष्य रुद्रं और येंइं
“संपये विश्व उसकें 'भीतर 5्रमया व्यर यह ब्यंड
? चारों ञोर आकंशसे व्यातहे शमाकाशं अहिकांरकर
“ के वेद्टितहैं अहंकार मंहतत्व दा ह्मोर महत्त्व मंधानं
“करके वेष्टित है। और इस अंडा आत्मा ब्रह्म । इस
“मंकारके कई कोटि ब्रह्मांड और: हे योर सब में ब्रह्म:
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