श्रीलिंगपुराण भाषा | Shrilingapuran Bhasha

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Shrilingapuran Bhasha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर्घाध । श्र तंन्सात्र. और शब्द तन्मात्रंसे आकाश उत्पन्न हुआ और 'ब्याकीश ने शब्द को आवरण: किया इसीसे आकाश शब्द को कारण कहायों आकाशसे स्पर्श तन्मात्र ओर 'स्पंशे तनमात्र से वांय उत्पन्न भया -वायसे रूप॑ तन्मात्र और रूप तन्मात्र से अण्नि, अग्निसे रस तन्मात्र ओर रस तन्मात्रसे; जल, 'जलंसे गन्ध तन्मात्र चर गन्घ तन्सातसे भमि उत्पन्न मई आकाशने, स्पशंसात्र को '्ॉवरण किया वाय ने रूंपमात्रें को' अग्नि ने रसंमात्रं को 'जल ने गन्धसात्र को. आवरण किंधा.एथ्वी में . पांच गण हैं जल में चार अखि में तीन बाय में.दो “गण चर आकाश में एक गणहे । इस ब्रकार . ' तन्मात्रा, आर पंच मंहासतां. की उत्पत्ति परस्पर : जांननी: चाहिये । सात्विक राजस तांमस सगकी म्रद्ति: 'युगपंत्त अत एककांल मेंही होती हे परंत थीं अंहं कार, सेहझे. सबंकी सगे अर्थात, उप्पत्ति लिखी है और : इस जीव की शब्दादिकों कीं बोध होनेके अंथ परमेश्वर नें पांच, ज्ञानिन्दिय और पांच कर्सेन्द्रियं रचें ओर संघ ' उमंयात्मकं “अधात-ज्ञानेन्दिंय और कर्ेन्द्रियं दोनोंकें '.गरणसे रचा। महतिस्व जम फिशने जल बुदुचुद की सांतिं : इसे चंड को उत्पन्न कियों नहा विष्य रुद्रं और येंइं “संपये विश्व उसकें 'भीतर 5्रमया व्यर यह ब्यंड ? चारों ञोर आकंशसे व्यातहे शमाकाशं अहिकांरकर “ के वेद्टितहैं अहंकार मंहतत्व दा ह्मोर महत्त्व मंधानं “करके वेष्टित है। और इस अंडा आत्मा ब्रह्म । इस “मंकारके कई कोटि ब्रह्मांड और: हे योर सब में ब्रह्म:




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