श्री जैन सिद्धांत बोल संघार भाग - ५ (दिवाकर रश्मिया ) | Shri Jain Sidhant Bol Sangrah Part- 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
548
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भावना | ११
सभाई यह है दि काई पिसी को सुख-दु्प नहीं पहुँचा सबता ।
मनुष्य का मन ही उसमे हु खो की सप्टि वरता है और यहां उसव
सुख वो उत्प्न बर सबता है। ससार चक्र मे अमण वरान थाना
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गे भागन मात्र से भी बस नहीं चलेगा परम परत पाप थे लिए हो
मेने थो १यागी बनाना हो पड़ेगा । विषयों के स्थाग वे साथ हो साथ
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परे थे लिए श्वाध्याय ध्यान चितन मनन मी आवश्यवता है
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झगरा बा जस्पाण तो तरी ही रद हू कपरे कूल,
हैलीदीग ।
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