श्रमणचर्या | Sramanacharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
281
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विशुद्धमती माताजी - Vishuddhamati Mataji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रसणचर्था--७9
स्वाध्याय भ्रादि शौर भी कुछ झ्ावध्यक काये किये जाते हैं, वे सब
कृतिकर्म पुबक ही होने चाहिए ।
कृतिकर्म का लक्षण
पापविनाशन के उपाय को कृतिकम कहते हैं । श्रथवा जिन
श्रक्षरसमूहों से या जिन .परिशामों से श्रथवा जिन क्रियाश्ं से श्राठ
प्रकार के कम काटे ( छेदे ) जाते हैं, उसे कृतिक्म कहते है । श्रर्थातु
दो श्रवनति ( भूमि स्पर्श करके नमस्कार ), बारह श्रावत्तें श्रौर चार
दिरोनति पुर्घेक जो सामायिक स्तव, कायोत्सग श्रौर चतुरविशतिस्तव
का. ( मन, वचन, काय की शुद्धिपूवेंक ) प्रप्रोग किया जाता है, उसे
कृतिक्म कहते हैं ।
साधुजनों को म्रहोरात्रि ( २४ घण्टों ) में निम्नलिखित श्रट्ठाईस
क़तिक्म श्रवइ्य करने योग्य हैं । यथा--एक काल की सामायिक में
चेत्य एवं पब्चगुरुभक्ति सम्बन्धी दो क्ृतिक्म ( कायोत्सगं ) होते हैं ।
अ्रत: पूर्वाह्न, मध्याह्न भ्रौर श्रपराह्न के (३०६२) ६ कृतिकम हुए ।
एक काल सम्बन्धी प्रतिक्रमण में सिद्ध, प्रतिक्रमण, निष्ठितिकरण वीर
आर चतुरविशति तीर्थंकर भक्तिजन्य चार श्रर्धात् दोनों काल के (४ >९ २)
न८ कृतिकम हुए । पूर्वाह्न, श्रपराह्न, पूरव रात्रि ग्रौर श्रपररात्रि सम्बन्धी
चार काल स्वाध्याय के ( एक काल सम्बन्धी ३ कृतिकम भरत: )
१९ कृतिकर्म हुए । रात्रियोग प्रतिप्ठापन का एक श्रौर निष्ठापन का
एक, इस प्रकार (६+८+१र२+रल्र८) डतिक्म हैं, जो मुनि-
झ्रार्थिकाशं के लिये श्रवद्य ही करराीय हैं ।
इस प्रकार श्रब षड़ावइ्यक, २८ कृतिक्म, श्रभिषेक, श्राह्मर एवं
दीघशंका श्रादि अहोरात्रि को समस्त क्रियाएं किस विधि से करनी
चाहिए ? उसका विवेचन किया जाता है ।
साधुजन श्रहोरात्रि में किये गये ध्यान-प्रध्ययन श्रौर तपश्चरण
श्रादि के द्वारा उत्पन्न हुए शरीर के खेद को दूर करने के लिये जो श्रल्प
User Reviews
No Reviews | Add Yours...