श्रमणचर्या | Sramanacharya

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Sramanacharya by विशुद्धमती माताजी - Vishuddhamati Mataji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रसणचर्था--७9 स्वाध्याय भ्रादि शौर भी कुछ झ्ावध्यक काये किये जाते हैं, वे सब कृतिकर्म पुबक ही होने चाहिए । कृतिकर्म का लक्षण पापविनाशन के उपाय को कृतिकम कहते हैं । श्रथवा जिन श्रक्षरसमूहों से या जिन .परिशामों से श्रथवा जिन क्रियाश्ं से श्राठ प्रकार के कम काटे ( छेदे ) जाते हैं, उसे कृतिक्म कहते है । श्रर्थातु दो श्रवनति ( भूमि स्पर्श करके नमस्कार ), बारह श्रावत्तें श्रौर चार दिरोनति पुर्घेक जो सामायिक स्तव, कायोत्सग श्रौर चतुरविशतिस्तव का. ( मन, वचन, काय की शुद्धिपूवेंक ) प्रप्रोग किया जाता है, उसे कृतिक्म कहते हैं । साधुजनों को म्रहोरात्रि ( २४ घण्टों ) में निम्नलिखित श्रट्ठाईस क़तिक्म श्रवइ्य करने योग्य हैं । यथा--एक काल की सामायिक में चेत्य एवं पब्चगुरुभक्ति सम्बन्धी दो क्ृतिक्म ( कायोत्सगं ) होते हैं । अ्रत: पूर्वाह्न, मध्याह्न भ्रौर श्रपराह्न के (३०६२) ६ कृतिकम हुए । एक काल सम्बन्धी प्रतिक्रमण में सिद्ध, प्रतिक्रमण, निष्ठितिकरण वीर आर चतुरविशति तीर्थंकर भक्तिजन्य चार श्रर्धात्‌ दोनों काल के (४ >९ २) न८ कृतिकम हुए । पूर्वाह्न, श्रपराह्न, पूरव रात्रि ग्रौर श्रपररात्रि सम्बन्धी चार काल स्वाध्याय के ( एक काल सम्बन्धी ३ कृतिकम भरत: ) १९ कृतिकर्म हुए । रात्रियोग प्रतिप्ठापन का एक श्रौर निष्ठापन का एक, इस प्रकार (६+८+१र२+रल्र८) डतिक्म हैं, जो मुनि- झ्रार्थिकाशं के लिये श्रवद्य ही करराीय हैं । इस प्रकार श्रब षड़ावइ्यक, २८ कृतिक्म, श्रभिषेक, श्राह्मर एवं दीघशंका श्रादि अहोरात्रि को समस्त क्रियाएं किस विधि से करनी चाहिए ? उसका विवेचन किया जाता है । साधुजन श्रहोरात्रि में किये गये ध्यान-प्रध्ययन श्रौर तपश्चरण श्रादि के द्वारा उत्पन्न हुए शरीर के खेद को दूर करने के लिये जो श्रल्प




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