गाँधी वध और मैं | Gandhi Vadh Or Main
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
390
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुन मिला । उसने मुससे कहा कि उसके दल ने एक बड़े नेता को मार डालने
का निश्चय किया है। मैंने उससे उस नेता का नाम पूछा । पहले तो उसने यह
कहकर नाम प्रकंट करने में आनाकानी की कि नाम वह भह्दी जानता, किन्तु,
मैंने जव यह सोचकर उससे अधिक आग्रह किया कि उसे उक्त नेता का नाम
अवश्य ज्ञात होगा, तब उसने गाधीजी का नाम लिया । मुझे यह जानकर
आघात सा लगा भर मैंने उसे इसप्रकार की मूर्खता न करने की सलाह दो ।
बातो-वातो में उसने यह भी कह दिया कि गाधीजी की प्रार्थना सभा में बम
विस्फोट करने का काम उसे सौपा गया हैं । उसने कहा कि इससे सभा में भगदड
मच जायेगी भर उपयुक्त अवसर पाकर उसके अन्य साथी गाधीजी को घेर छेगे ।
मैंने उसे समझाया कि वह पाकिस्तान से निष्कासित है। पजाब में हुए साम्प्र-
दायिक उपद्रवो में पहले ही उनकी पर्याप्त हानि हो चुकी है। अत इसप्रकार
का कार्य उसे नही करना चाहिये । मैंने उसे उसके इस निश्चय से विरत करने के
लिए उससे बहुत देर तक बातचीत की । पीछे जब वह चला गया तव मैंने उसकी
वातो को अधिक महत्व नहीं दिया क्योकि उन दिनों विभाजन के कारण
विस्थापित ( शरणार्यी ) वहुत कषुव्ध थे और वें बहुत कट भव्दों में गाघीजी और
काग्रेस को कोसा करते थे ।””
“'दो-एक दिन पश्चात् मदनलाल फ़िर मेरे पास आया तो मैंने उससे पूछा
कि उसने मेरी वातो पर विचार किया या नहीं ? उसने उत्तर दिया कि वह
मुझे पिंतता के समान समझता हैं और यदि उसने मेरी सम्मति को न माना तो
उसका सर्वनाद हो सकता है । किन्तु दो दिन पश्चात् वह पुन. मेरे यहाँ माया,
तब उसने सूचना दी कि वह दिल्ली जा रहा हैं।”
“मदनछाल के दिल्ली जाने के लगभग दो दिन पश्चात् सेंट झेवियर कॉलेज
के प्रशाल ( हाल ) में श्री जयप्रकाश नारायण का भाषण हुआ । मैं वहाँ
उपस्थित था । मैंने श्री जयप्रकाश नारायण से मिलने और उन्हें मदनलाल द्वारा
खताये गये पडयन्त्र के भाभास से अवगत कराने की चेष्टा की । श्री जयप्रकाद्य
नारायण दिल्ली जाने वाले थे और दिल्ली के अधिकारियों को उनके द्वारा सचेत
किये जानें से सभावित दुर्घटना के निवारण की मुझे भाशा थी । किन्तु उनके
आसपास बहुत भीड होने के कारण मैं उनसे भलीभाँति मिल नहीं सका तथापि
दिल्ली में किसी पडयन्न्र की संभावना का सकेत मैंने उन्हें दे दिया ।”
“गाधीजी की प्रार्थना सभा में मदनलाल द्वारा किये गये बम-विस्फोट और
उसकी गिरफ्तारी के समाचार मैंने दिनाक ११-१-४८ को पढ़ें और तभी दुरभाप
पर सरदार वल्लमभाई पटेल से वातें करने का निश्चय किया किन्तु मेरा प्रयास
असफल रहा । श्री स० का० पाटील से भेट करने का भी मैंने प्रयास किया
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कर
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