संजीवन सन्देश | Sanjivan Sandesh

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Sanjivan Sandesh by टी० एल० वास्वानी- T. L. Vaswaniवेणीमाधव अग्रवाल - Venimadhav Agrawal

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वेणीमाधव अग्रवाल - Venimadhav Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उनके सहारे भविष्यको महान, और अतिभाशाली बनानेमें सम हो सकेगा । केवल कार्यकारिंगी उत्तेजनाको--रजनी शक्तिको--सुक्त कर दो 1 युवकोंको अखिल-भारतीय आन्टोलनके लिये संगठित करों । यह आन्दोलन आदुर्य-प्राप्तिके लिये होगा । जय आदुर्शचाद अश्रसर होता है, तब चह अम्निके समान अदस्य भौर अजेय हो जाता है । अनेक भारतीय युवक यह चाहते हैं कि जड़्वादी द्ेग्लेंडके साथ हम जदुवादहीके अख्रोंसे युद्ध करे । एक देदभक्त वियार्थीने मुझसे कहा कि हमें आततायी बनना चाहिये । दूसरेने कहा--हसे तीव्र द्वेप करना सीखना चाहिये । फिन्तु द्रेप प्रतिहिंसक प्रदृत्ति है । हम देखते है कि विदेशी मचुप्यके प्रति किया गया विद्वेप साम्प्रदायिक शत्रुताके रूपमे परिणत हो जाता है। नहीं, जद्वाद, युद्धवाद और द्रेपपूर्ण राष्ट्रवाद वैमनस्य तथा सेद- भावको बदाते हैं, अतएव इनके द्वारा राट्रकी दाक्ति क्षीण होती है । सबक सचेतन आदुर्दावादुदीसे जनसमूहका पुनरुत्थाव होता है । यूरोप- में जो जायूति हुई थी उसके कर्णघार कौन थे ? सन्त वरनाडे (१०७१-११५३) और सन्त फ्रांसिस (११८२-१२२६) प्रम्डति समहात्सागण । समय समयपर भारतमें जीवन-संचार किनने किया ? भाय नरपियोने, भारतके कर्मयोगी तर्वदर्शियोंने, भारतीय आदशके उपासकोंने । आज आवश्यकता है इस चातकी कि भारतीय आदर नवयुकोंके जीवनमें अवतरित होकर उन्दें माताकी सुक्तिकी पचित्र आकांक्षासे प्रेरित कर दे | जितना अधिक मैं विचार करता हूँ उत्तना ही अधिक मेरा चिश्वास इृढतर होता जाता हैं कि वर्तमान समयसे हमें जड्वाद और द्वेपप्रघान राष्ट्रवादकों तिलॉजलि देकर रचनात्मक कार्यक्रमकों लेकर आगे बढ़ना चाहिये । इसमें दो यातोंकी जरूरत है ।--एक भारतीय संस्कृतिक नूतन अध्य- यनकी आर दूसरी ध्राम्य-जीवनको आर्थिक तथा सामाजिक रृष्टिसे पुरनर्निमाण करनेकी । पहली बातसें यह ज्ञात होगा कि अपने इतिहासके सुदीर्घ कालमें भारत- के विद्वानोंने सटेव मरेसके तसवका ही उपदेदा दिया है--द्रेप और वैरकी रीति कदापि नहीं सिखलाईं | दूसरी घातसे यह प्रकट होगा कि भारत अपने ध्येयफी भ्राप्तिके लिये किस तरद सामर्थ्य लाभ कर सकता है ।




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