श्री नैमि दुर्दम | Shri Naimi Dudam

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Shri Naimi Dudam by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) यही 'उत्तरसेघ” की अमरावती है, जहाँ योगी को 'सो5्दं” की नुमूत्ति होती है :-- सो5ददमित्यात्तसंस्कारस्तस्मिद भावनया पुनः इस रूपक की चास्तविक पूर्ति तभी दोती है, जब यक्ष अपनी प्रिया से मिल जाता है, जब 'सो5ह” की अनुभूति प्राप्त ो जाती 'है। इसीलिये श्मन्तिम दो पदों में दोनों का मिलन दिखा दिया . गया है । संभवत: दो पदों में कथा एक दम शीघ्रता से समाप्त दोने तथा इतना सद्दसा मिलन दोने के लिये ालोचक के तैयार न होने से वे उसे प्रक्ित मानते हैं । ऐसे लोगों को भारतीय साहि- त्य की विशेषता--विशेष रवीन्द्र बावू के निम्न लिखित शब्द याद रखने चाहिये-''मद्दाभारत में यददी बात है। स्वगोरोदइण पर्य में दी कुरुचेत्र के युद्ध को स्वगे लाभ दोगया । कथाप़िय न्यफियों को जद कथा-समापि रुचिकर होती, वहीं मद्दाभारतकार नददीं रुके; इतनी बडी कद्दानी को धूल के बते घर की भांति वे एक क्षण में छिन्न-भिन्न कर झागे बढ़ गये। जो संसार से बिरागी हैं श्र कथा-कद्दानियों को उदासीन भाष से देखते हैं; उन्दोंने दी इसके भीत्तर से सत्य का भी अनुसंधान किया; वे झुल्घ नहीं हुये ।” बिल- कुल यद्दी वात मेघदूत के लिये कट्टी जा सकती हैं । यही कारण है कि जैन मनीपियों और सद्दात्माओं ने सेघ- दूत के लेखक कालिदास को 'सदुभूताथम्रचर कवि” माना है और उसके झनुकरण पर जैन सेघदूत, नेमिदूत, शीलदूत, पाश्वों भ्युद्य 'ादि प्रन्थ लिखकर न केवल सदाचार श्बौर सयम का आादरें स्था- पित किया छापितु परमाथे-तत्त्व का भी निरूपण कर दिखाया और साथ ही काव्य की भाषा में रखने से उसे सरसता भी प्रदान की । उक्त झन्तिम दो पदों की टीकाकारों द्वारा उपेक्षा होने का कारण केवल यही हो सकता हे कि वे कबित्व की दृष्टि से उत्तम नदीं; केचल कथा उनमें छुतगति से छलांग मारती है । इसी कारण संभवत: ये




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