स्वर्णलता | Swarnalata
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
672
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्ण॑लता । ६
ला
_ चिता पर से उठ बेठती । बोलो--ुवे दोनों जने तो हाथ
धघोके सारे पोछे पड़े हे क्या इसारों इतनी खराबी करके
भी उनलोगों कौ छाती ठरढो नद्ीं छोतो” । शशिभूपण ने
घचडाकर पूछा 'वच् लोग कौन ? और तुस्हें क्या तकाजोफा
दौ!' ं
प्रसदा--पूछते ो कि क्या तकलोफ दी भ्रब बाकी या है ।”
शुशि०--साफ २ न कहने से भला इंस व्योकर लान सवो
ईै ? कुछ इम अन्त श्रामो ता रैंछों नछों कि किसो के
जो को बात जान सकें० खोलकर कद्दों को वद लोग
कौन * विुभूषण और १--।
प्रमदा--घभर कौन बच्चो मालिक सालिकनी जो एक छान
तो इसारे पोछेो पढ़े है चसारे लिये कुछ इच्ा नद्ीं
कि उन्हें झाग लग उठो जेसे अपने गौाठ से देना प-
इता दोय आ्रोर दूसरों लगी इसो फ़िकिर में रइतो हैं
कि जिसें चार आदमियों के वौच में इसारो बेद्ल्नती
उोय ।”
शशि०--“द्यों विधु ने कुछ यद तो काशी नदों कि तुन्हें
सन्ट्रह्पर न॑ दिया जाय चरुने तो सिफं यद्ी कड़ा था
कि को कोई भा जाता है तो बेठकखाना बिना उसको
दो तकलोफ़ कोतो है, इससे बेठक पद्चिले बन लाय,
और तो कुक कद्दा नदों ।”
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