स्वामी रामतीर्थ और उपदेश भाग -vi | Swami Ramtirtha Ke Lekh Or Updesh Vol-vi

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Swami Ramtirtha Ke Lekh Or Updesh Vol-vi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का दृष्ट्रिसप्रिवाद श्र वस्तुसंत्तावाद का समन्वय. ८ है? द्राप नदी देख सकते 1. इसलिए कटूपनाचादी कहते हैं: कि यद्द सारी डुनिया विचार के सिवा और कुछ भी नहीं है, यद्द सम्पूर्ण संसार केचल विचार का विस्तार मात्र है। बाप केखे जानते ई दि संसार का शरितत्व है ? धपनी इ्द्रियों के द्वारा । किन्तु इान्द्रियाँ स्वयं किसी पदाधथ का वोघ नद्दीं कर सकती । जब उनका मन वे संयोग होता है तभी उन्हें वोध द्ोता ई, दूसरे शब्दों से इत्द्रियाँ नहीं देखती घरन, इन्द्ियों के द्वारा मन देखता है । झब आपका याद होगा कि मन या बुद्धि ही द्र्टा हैं घोर मानसिक व्यापार के थिना आप कुछ नहीं खुन सकते, झाप ऊुछु नददीं देख सकते, घ्ाप कुछ नद्दी कर सकते । म।्नलिंक क्रिय,शीलत। के विना आप किसी चस्तु को इन्द्रियगम्य नदी कर सकते । इस लि र कठपना वादी कहते हैं, “पे दुनिया के लोगो ! तुम जो इस डु नया का सत्य कद्दते दो और दुनिया की इन चम्तुश्नो को स्वतन्त्र रूप से सत्य मानते दा, और छापने श्रापकों क्या भूले दो ऐसी भूल न करो । इन सब चस्वु्रा की खष्टि तुम्दपरे घास होती है, या वे तुम्दारे विच।र द्वारा वनती हूं चास्तव में तुम इनके बन नेवाले दो ।” यददी झरपनावादियों का कथन है और ऐसा दिखाई पढ़ता है दि कटपनावादी ऊुछु-झुछ चेदास्तियों से मिलते जुलते हैं। परन्तु राम आप ने कहता है कि इन सब कटपनावा द्यों ( चकेले, अफलादून, देगेल, कांड, फिक्टे शेली, शोपनद्दाचर ) की विचारधारा में वेदान्त के कुछ न्त हैं। किन्तु संवेद्न की कठपना ( हमें पदार्थों का बोध किस परकार द्ोता दे ) के सम्बन्ध में चेदास्त का सत इन सबसे कद्दी श्रारो है । इन लोगों में श्ापस में पक दूसरे से झगड़ा दे, उनमें परस्पर तू. दू मैं में और विरोध है, किंतु




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