समय सार | Samay Saar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
756
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तच्छ _तज्ञानसंबोधितभरतवषष भव्यजीवेन श्रीजिनचन्द्रसूरिभट्टार कपट्राभरणभरूतेन कलिकाल-
स्वेज्ेन विरचिते षट्प्राभृतग्रन्थे *
श्री पद्मनन्दी, कुन्दकुन्दाचायें, वक्रग्रीवाचायं, एलाचार्य एव गृद्धपिच्छाचायें -
पंचनामधारी , जमीन से चार प्ंगुल ऊपर श्राकाश में चलने की ऋद्धिधारी; पूर्वेविदेह की
पुण्डरीकणी नगरी में विराजित सीमन्घर श्रपरनाम स्वयंप्रभ तीर्थंकर से प्राप्त ज्ञान से
भरतक्षेत्र के भव्यजीवो को संबोधित करनेवाले; श्री जिनचन्द्रसूरि भंट्रारक के पट्ट के
श्राभरण ; कलिकालसवेज्ञ (श्री कुन्दकुन्दाचायंदेव ) द्वारा रचित षट्प्राभ्ृत ग्रन्थ में ' *** ।
उक्त कथन में कुन्दकुन्द के पाँच नाम, पृवविदेहगमन, श्राकाशगमन श्र
जिनचन्द्राचार्य के शिष्यत्व के अ्रतिरिक्त उन्हें कलिकालसवंज्ञ भी कहा गया है ।
श्राचायें कुन्दकुन्द के सम्बन्ध में प्रचलित कथाश्रों का श्रवलोकन भी श्रावश्यक है ।
ज्ञान प्रबोध' मे प्राप्त कथा का सक्षिप्त सार इस प्रकार है :-
“मालवदेश वारापुर नगर में राजा कुमुदचन्द्र राज्य करता था । उसकी रानी
का नाम कुमुदचन्द्रिका था । उसके राज्य में कुन्दश्रेष्ठी नामक एक वरिएक रहता था ।
उसकी पत्नी का नाम कुन्दलता था । उनके एक कुन्दकुन्द नामक पुत्र भी था । बालकों
के साथ खेलते हुए उस बालक ने एक दिन उद्यान में बैठे हुए जिनचन्द्र नामक मुनिराज
के दर्शन किए श्रौर उनके उपदेश को अनेक नर-नारियों के साथ बड़े ही ध्यान से सुना ।
ग्यारह वर्ष का बालक कुन्दकुन्द उनके उपदेश से इत्तना प्रभावित हुभ्रा कि वह
उनसे दीक्षित हो गया । प्रतिभाशाली शिष्य कुन्दकुन्द को जिनचन्द्राचार्य ने ३३ वर्ष की
अवस्था में ही भ्राचार्य पद प्रदान कर दिया ।
बहुत गहराई से चिन्तन करने पर भी कोई ज्ञेय प्राचार्य कुन्दकुन्द को स्पष्ट नहीं
हो रहा था । उसी के चिन्तन में मग्न कुन्दकुन्द ने विदेहक्षेत्र में विद्यमान तीर्थकर
सीमधर भगवान को नमस्कार किया ।
वहाँ सीमघर भगवान के मुख से सहज ही “सद्मंवृद्धिरस्तु प्रस्फुटित हुआ्रा ।
समवसरणा में उपस्थित श्रोताश्रों को बहुत ग्राश्चयें हुमा । नमस्कार करनेवाले के बिना
किसको श्राशीर्वाद दिया जा रहा है ? - यह प्रश्न सबके हृदय में सहज हो उपस्थित हो
गया था । भगवान की वाणी में समाधान श्राया कि भरतक्षेत्र के श्राचायें कुन्दकुन्द को
यह श्राशीर्वाद दिया गया है ।
वहाँ कुन्दकुन्द के पुर्वंभव के दो मित्र चारणऋद्धिधारी मुनिराज उपस्थित थे ।
वे आचायें कुन्दकुन्द को वहाँ ले गये । माग में कुन्दकुन्द की मयुरपिच्छि गिर गई, तब
रैंप.
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